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सोमवार, 14 मार्च 2011

अब नहीं भा रहा खेती का धंधा





 

      


अब नहीं भा रहा खेती का धंधा



सव्रेक्षण शिवरामाकृष्णन परमेश्वरन
सरकारी संस्था नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के एक सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि भारत में 45 प्रतिशत कृषक विकल्प उपलब्ध होने की स्थिति में कृषि छोड़ किसी और रोजगार में जाना चाहते हैं। जिन किसानों से सवाल पूछे गए उनमें से 45 प्रतिशत का कहना था कृषि उनकी घरेलू जरूरतें पूरी करने में सक्षम नहीं है इसलिए वे किसी दूसरे काम के बारे में सोच सकते हैं। भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का मानना है कि यह चिंताजनक स्थिति है और कृषि क्षेत्र की हालत बेहतर बनाने की जरूरत है।
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन मानते हैं कि यह स्थिति भारत में एक बड़े कृषि संकट की आशंका की ओर इशारा कर रही है। उनका कहना है कि भारत में दो-तिहाई आबादी यानी 60 करोड़ से अधिक लोग कृषि पर निर्भर करते हैं इसलिए कृषि की हालत में सुधार के बिना देश की हालत में सुधार नहीं हो सकता। वे कहते हैं, भारत की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है इसलिए सजग रहने की बहुत जरूरत है, अगर सजगता से सही समय पर सही कदम नहीं उठाए गए तो भारी संकट आ सकता है। उनका कहना है, भारत में कृषि सिर्फ अनाज उत्पादन की मशीन नहीं है बल्कि वह देश की बड़ी आबादी के लिए रीढ़ की हड्डी है, भारत में कृषि का महत्व दुनिया के किसी भी औद्योगिक देश की तुलना में कहीं अधिक है। उन्हेंने कहा, आज का ओद्यौगिक विकास रोजगार रहित विकास है जबकि कृषि में रोजगार प्रमुख है इसलिए भारत के लिए कृषि को छोड़ना कोई विकल्प नहीं हो सकता। कृषि के आधुनिकीकरण में पूंजी निवेश की बहुत जरूरत है, आधारभूत सुविधाएं विकसित करनी होंगी ताकि प्रति एकड़ भूमि से किसान को अधिक से अधिक आय मिल सके।
विशेषज्ञों का मानना है कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा काम हो गया है इसलिए किसान खेती करना छोड़ना चाहते हैं, वे कहते हैं, पहले वे कर्ज लेते हैं फिर फसल लगाते हैं, कभी बारिश नहीं होती तो कभी बाढ़ आ जाती है। अगर फसल अच्छी हो तो फसल की इतनी कीमत नहीं मिलती कि किसान का घर चल सके। इसका एक बड़ा कारण दिनों दिन बढ़ती मजदूरी भी है। खेती में आने वाली लागत के अनुसार उसकी उपज काफी कम होती है और प्राकृतिक आपदा आने पर सब कुछ हाथ से निकल जाता है।
उनका कहना है कि अनिश्चित मौसम, अनिश्चित बाजार और कर्ज का दबाव किसानों पर बहुत भार डाल रहा है जिसकी वजह से वे पूरी तरह थक चुके हैं। उनका कहना है कि जीवन के दूसरे खर्चे कई गुना बढ़ते जा रहे हैं और कृषि से होने वाली आय छोटे किसानों की जीवनचर्या के लिए पर्याप्त नहीं रह गई है।



सव्रेक्षण शिवरामाकृष्णन परमेश्वरन
सरकारी संस्था नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के एक सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि भारत में 45 प्रतिशत कृषक विकल्प उपलब्ध होने की स्थिति में कृषि छोड़ किसी और रोजगार में जाना चाहते हैं। जिन किसानों से सवाल पूछे गए उनमें से 45 प्रतिशत का कहना था कृषि उनकी घरेलू जरूरतें पूरी करने में सक्षम नहीं है इसलिए वे किसी दूसरे काम के बारे में सोच सकते हैं। भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का मानना है कि यह चिंताजनक स्थिति है और कृषि क्षेत्र की हालत बेहतर बनाने की जरूरत है।
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन मानते हैं कि यह स्थिति भारत में एक बड़े कृषि संकट की आशंका की ओर इशारा कर रही है। उनका कहना है कि भारत में दो-तिहाई आबादी यानी 60 करोड़ से अधिक लोग कृषि पर निर्भर करते हैं इसलिए कृषि की हालत में सुधार के बिना देश की हालत में सुधार नहीं हो सकता। वे कहते हैं, भारत की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है इसलिए सजग रहने की बहुत जरूरत है, अगर सजगता से सही समय पर सही कदम नहीं उठाए गए तो भारी संकट आ सकता है। उनका कहना है, भारत में कृषि सिर्फ अनाज उत्पादन की मशीन नहीं है बल्कि वह देश की बड़ी आबादी के लिए रीढ़ की हड्डी है, भारत में कृषि का महत्व दुनिया के किसी भी औद्योगिक देश की तुलना में कहीं अधिक है। उन्हेंने कहा, आज का ओद्यौगिक विकास रोजगार रहित विकास है जबकि कृषि में रोजगार प्रमुख है इसलिए भारत के लिए कृषि को छोड़ना कोई विकल्प नहीं हो सकता। कृषि के आधुनिकीकरण में पूंजी निवेश की बहुत जरूरत है, आधारभूत सुविधाएं विकसित करनी होंगी ताकि प्रति एकड़ भूमि से किसान को अधिक से अधिक आय मिल सके।
विशेषज्ञों का मानना है कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा काम हो गया है इसलिए किसान खेती करना छोड़ना चाहते हैं, वे कहते हैं, पहले वे कर्ज लेते हैं फिर फसल लगाते हैं, कभी बारिश नहीं होती तो कभी बाढ़ आ जाती है। अगर फसल अच्छी हो तो फसल की इतनी कीमत नहीं मिलती कि किसान का घर चल सके। इसका एक बड़ा कारण दिनों दिन बढ़ती मजदूरी भी है। खेती में आने वाली लागत के अनुसार उसकी उपज काफी कम होती है और प्राकृतिक आपदा आने पर सब कुछ हाथ से निकल जाता है। उनका कहना है कि अनिश्चित मौसम, अनिश्चित बाजार और कर्ज का दबाव किसानों पर बहुत भार डाल रहा है जिसकी वजह से वे पूरी तरह थक चुके हैं। उनका कहना है कि जीवन के दूसरे खर्चे कई गुना बढ़ते जा रहे हैं और कृषि से होने वाली आय छोटे किसानों की जीवनचर्या के लिए पर्याप्त नहीं रह गई है।


  



  

 

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