यह थॉयरॉयड एवं घेंघा रोग के मरीजों को लाभ पहुंचाता है। इस समय तालाबों में इसकी बेलें डाली जा रही हैं। इससे तैयार फसल प्रारंभ में 50-60 रुपए प्रति किलो की दर से नीचे नहीं बिकती है। आयुव्रेद के अनुसार सिंघाड़े को हल्का, शीतल एवं तृप्तिकारक फल माना जाता है। दूध की अपेक्षा सिंघाड़ा में 22 प्रतिशत खनिज क्षार होता है। यह पित्त दोष और खून की खराबी को दूर करता है। यह इतना पौष्टिक होता है कि मानव शरीर की सभी जरूरतें इससे पूरी हो जाती हैं। इसकी करिया हरीरा एवं लाल गुढ़आ किस्में कई इलाकों में लगाई जाती हैं। इसकी खेती करने वाले लोग साल में एकबार सिर्फ इसी की खेती करते हैं। कुछ नए किसान देखा-देखी इस खेती की ओर अग्रसर होने लगे हैं। इसकी खेती के लिए लोग परंपरागत तरीके से कम पानी वाले तालाबों में बेलों को तैयार करते हैं और इन्हें बेचकर भी अच्छा पैसा कमाते हैं। किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती करने से पहले किसी छोटे तालाब में खेती करके देखें क्योंकि इसमें हर समय पानी में कार्य करना पड़ता है। हालांकि सिंघाड़े को बाजार में आने में कुछ महीने बाकी हैं। |
किसान भाइयों को अत्याधुनिक खेती की तकनीकों की जानकारी मिलने का सरल साधन।
रविवार, 9 जून 2013
बड़े काम का सिंघाड़ा
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