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अब गेहूं की खड़ी फसल में बोएं मूंग
सीमैट ने हरियाणा में एक हजार किसानों के यहां लगाए एफएलडी
मथुरा। अब किसान खेतों में बगैर जुताई के गेहूॅं के साथ मूंग की खेती आसानी से कर सकेंगे। इस दिशा मंे अन्तर्राष्ट्रीय मक्का एवं गहूं अनुसंधान संस्थान मैक्सिेको, सीमैट के साउथ ऐशिया कोआर्डिनेटर डा. राज गुप्ता के निर्देशन में प्रयोग काफी सफल रहे हैं। दुनियां के कई अन्य देशों के साथ हरियाणा के एक हजार किसानों के यहां यह नुस्खा अजमाया जा रहा है। इसके परिणाम अत्यंत उत्साह जनकर रहे हैं।
इस दिशा में काम अगे बढ़ाने की ठोस वजह हैं। पर्यावरणीय बदलावों के चलते फरवरी मार्च में कई राज्यों में तापमान जंप मारता है। इससे गेहूं की बहुतायत में बोई जाने वाली फसल पर फोर्स मेच्योरिटी का संकट गहराने लगा है। किसान करता यह है कि गेहूं में अंतिम पानी लगाने से किसान खर्चे एवं फसल को गिरने के भय से बचते हैं। इससे उपज तो घटती ही है दूसरा नुकसान यह होता है कि दाना कमजोर रहने से उसका बाजार मंे बाजिव मूल्य भी नहीं मिल पाता। इसके समाधान क्रम में ही वैज्ञानिकों ने गेहूं के साथ दालहनी खेती का विकल्प तलाशा है।
डा. गुप्ता ने बताया कि उनके प्रयोग कई फसलों में चल रहे हैं। पहला वह टर्मिनल हीट में टिकाउू प्रजातियों का भी चयन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि टर्मिनल हीट से बचाने के लिए एक तो गहूं की फसल को जल्दी बोने की सलाह देते हैं। तीसरा गेहूं की फसल में अंतिम पानी देते समय दालों की बिजाई का है। उन्होंने बताया कि गेहूं की खड़ी फसल में दालों की बुबाई कटाई से 20 से 25 दिन पूर्व तक की जा सकती है। उन्होंने बताया कि पानी खेत में ज्यादा नहीं तो कमसे कम आधा इंच खड़ा होना चाहिए। इसमें खड़ी फसल में निर्धारित मात्रा से थोड़ा ज्यादा बीज छिटक देना चाहिए। बालियों आदि में फंसा बीज हवा से पौधों के हिलने पर जमीन में चला जाता है। नमी के चलते पौधों की जड़ों में दालों में अंकुरण होने लगता है। दूसरी ओर फसल कटाई को तैयार हो जाती है। कटाई करते समय पौधों को बचाने का प्रयास करना चाहिए। वह कंबाइन से कटाई एवं हाथ की कटाई वाली दोनों स्थितियों पर अनुसंधान कर रहे हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं वह छोटे प्लाट में इस प्रयोग को करके देखें। ज्यादातर इलाकों में किसान गेहूं के बाद खेतों में कोई फसल नहीं लेते। इन इलाकों के लिए यह तकनीक उपयुक्त हो सकती है। अभी तक के प्रयोग में एक टन दाल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिल जाती है। इसमें पानी केवल एक लगाना होता है। दलहन का यह प्रयोग सफल रहा तो देश में दालों की कमी नहीं रहेगी। किसानों की जमीन का स्वास्थ्य भी सुधरेगा। दलहनी पौधों की जड़ों से मिलने वाले पोषक तत्व दूसरी फसल को मिल सकेंगे। इतना ही नहीं दलहनी खेती छोड़ रहे किसानों के परिवारों को भी कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकेगी। वह अपने खेत में तैयार दालें तो खिला सकते हैं लेकिन बाजार से महंगी कीमत पर दाल खरीद कर नहीं खिला सकते। गेहूं के साथ दलहनी खेती से फसल चक्र में बदलाव का क्रम भी शुरू हो पाएगा। खरपतावार नियंत्रण की दिशा में यह प्रयोग कुछ दूरगामी परिणाम दे सकता है। उन्होंने कहा कि बलवी मिट्टी में यह प्रयोग ज्यादा सार्थक रहा है। हरियाणा सरकार के किसान आयोग की मांग पर किसानों के यहां एक हजार फील्ड प्रदर्शन लगाएंगे। अधिक जानकारी के लिए डा. राजगुप्ता के मोबाइल नंबर 09711009365 पर संपर्क कर सकते हैं। ध्यान इतना रखें कि सुबह 11 से सायं पांच बजे के बीच ही संपर्क करें।
अब गेहूं की खड़ी फसल में बोएं मूंग
सीमैट ने हरियाणा में एक हजार किसानों के यहां लगाए एफएलडी
मथुरा। अब किसान खेतों में बगैर जुताई के गेहूॅं के साथ मूंग की खेती आसानी से कर सकेंगे। इस दिशा मंे अन्तर्राष्ट्रीय मक्का एवं गहूं अनुसंधान संस्थान मैक्सिेको, सीमैट के साउथ ऐशिया कोआर्डिनेटर डा. राज गुप्ता के निर्देशन में प्रयोग काफी सफल रहे हैं। दुनियां के कई अन्य देशों के साथ हरियाणा के एक हजार किसानों के यहां यह नुस्खा अजमाया जा रहा है। इसके परिणाम अत्यंत उत्साह जनकर रहे हैं।
इस दिशा में काम अगे बढ़ाने की ठोस वजह हैं। पर्यावरणीय बदलावों के चलते फरवरी मार्च में कई राज्यों में तापमान जंप मारता है। इससे गेहूं की बहुतायत में बोई जाने वाली फसल पर फोर्स मेच्योरिटी का संकट गहराने लगा है। किसान करता यह है कि गेहूं में अंतिम पानी लगाने से किसान खर्चे एवं फसल को गिरने के भय से बचते हैं। इससे उपज तो घटती ही है दूसरा नुकसान यह होता है कि दाना कमजोर रहने से उसका बाजार मंे बाजिव मूल्य भी नहीं मिल पाता। इसके समाधान क्रम में ही वैज्ञानिकों ने गेहूं के साथ दालहनी खेती का विकल्प तलाशा है।
डा. गुप्ता ने बताया कि उनके प्रयोग कई फसलों में चल रहे हैं। पहला वह टर्मिनल हीट में टिकाउू प्रजातियों का भी चयन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि टर्मिनल हीट से बचाने के लिए एक तो गहूं की फसल को जल्दी बोने की सलाह देते हैं। तीसरा गेहूं की फसल में अंतिम पानी देते समय दालों की बिजाई का है। उन्होंने बताया कि गेहूं की खड़ी फसल में दालों की बुबाई कटाई से 20 से 25 दिन पूर्व तक की जा सकती है। उन्होंने बताया कि पानी खेत में ज्यादा नहीं तो कमसे कम आधा इंच खड़ा होना चाहिए। इसमें खड़ी फसल में निर्धारित मात्रा से थोड़ा ज्यादा बीज छिटक देना चाहिए। बालियों आदि में फंसा बीज हवा से पौधों के हिलने पर जमीन में चला जाता है। नमी के चलते पौधों की जड़ों में दालों में अंकुरण होने लगता है। दूसरी ओर फसल कटाई को तैयार हो जाती है। कटाई करते समय पौधों को बचाने का प्रयास करना चाहिए। वह कंबाइन से कटाई एवं हाथ की कटाई वाली दोनों स्थितियों पर अनुसंधान कर रहे हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं वह छोटे प्लाट में इस प्रयोग को करके देखें। ज्यादातर इलाकों में किसान गेहूं के बाद खेतों में कोई फसल नहीं लेते। इन इलाकों के लिए यह तकनीक उपयुक्त हो सकती है। अभी तक के प्रयोग में एक टन दाल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिल जाती है। इसमें पानी केवल एक लगाना होता है। दलहन का यह प्रयोग सफल रहा तो देश में दालों की कमी नहीं रहेगी। किसानों की जमीन का स्वास्थ्य भी सुधरेगा। दलहनी पौधों की जड़ों से मिलने वाले पोषक तत्व दूसरी फसल को मिल सकेंगे। इतना ही नहीं दलहनी खेती छोड़ रहे किसानों के परिवारों को भी कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकेगी। वह अपने खेत में तैयार दालें तो खिला सकते हैं लेकिन बाजार से महंगी कीमत पर दाल खरीद कर नहीं खिला सकते। गेहूं के साथ दलहनी खेती से फसल चक्र में बदलाव का क्रम भी शुरू हो पाएगा। खरपतावार नियंत्रण की दिशा में यह प्रयोग कुछ दूरगामी परिणाम दे सकता है। उन्होंने कहा कि बलवी मिट्टी में यह प्रयोग ज्यादा सार्थक रहा है। हरियाणा सरकार के किसान आयोग की मांग पर किसानों के यहां एक हजार फील्ड प्रदर्शन लगाएंगे। अधिक जानकारी के लिए डा. राजगुप्ता के मोबाइल नंबर 09711009365 पर संपर्क कर सकते हैं। ध्यान इतना रखें कि सुबह 11 से सायं पांच बजे के बीच ही संपर्क करें।
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