ग्लोवल वॉर्मिंग खेती के लिए चुनौती
अनुसंधान कार्य भी इसी के अनुरूप करने होंगे तेजः एएसआरबी चेयरमैन सीडी माई
भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय में आयोजित हुआ राष्ट्रीय सरसों विज्ञान मेला
मथुरा। बढ़ता हुआ तापमान ख्ेाती के लिए गम्भीर चुनौती बन गया है। खेती में उपज स्थित हो गई है वहीं लागत बढ़ रही है इससे फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ही आज अनुसंधान करने की आवष्यकता है। किसानों को वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सरसों की विभिन्न किस्मों में से अपनी परिस्थितियों के अनुसार ही चयन करना चाहिए। किसानों को किस्मों पर ही निर्भर नही रहना चाहिए। अन्य तकनीकों को भी अपनाने की जरूरत है।
यह बात आज सरसों अनुसंधान निदेशालय में आयोजित 17वें सरसों विज्ञान मेला में मुख्य अतिथि कृशि वैज्ञानिक चयन मण्डल, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. चारूदत्त माई ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। ग्लोवल वार्मिंग की समस्या से निपटने को आईसीएआर ने पायलेट प्रोजेक्ट षरू किया है। इसके तहत तापमान रोधी किस्मों पर काम होगा। उन्होनें कहा किसानों को अपने समूह बनाकर उसके माध्यम से सामूहिक खेती करनी चाहिए ताकि बाजार पर किसान नियंत्रण कर सके। किसान समूह बनाकर बीज उत्पादन करने से अधिक फायदा होगा। उन्होनें कहा कि हमारे प्रा.तिक संसाधनों भूमि, वर्शा तथा सिंचाई योग्य जल की मात्रा तथा उनकी गुणवत्ता में भी कमी होती जा रही है। अधिक उपज लेने के उद्देष्य से अविवेकपूर्ण ढंग से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भी भूमि की उत्पादकता एवं उर्वरता में कमी हो रही है। यही कारण है कि हमारी उत्पादकता कम है और उसमें वृद्धि करने का हर संभव प्रयास हमंे करना होगा। जनसंख्या वृद्धि के मद्देनजर आवष्यक उत्पादन के लिए भूमि की उर्वराषक्ति को बचाये रखना और बढ़ाना अति आवष्यक है। इसके लिए सरकार ने मिट्टी परीक्षण की कई व्यवस्थाएं की है। भूमि में सूक्ष्म पोशक तत्वों जैसे जिंक, बोरोन, मेगनिषियम, आदि तत्वों की कमी हो गई है। जिनकी पूर्ति करना आवष्यक है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण दानों में तेल की मात्रा भी कम हो जाती है और उत्पादन भी कम मिलता है। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय .शि अनुसंधान परिशद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) प्रोफेसर स्वपन कुमार दत्ता ने अपने संबोधन में कहा कि राई-सरसों की फसलें हमारे देष की तिलहन अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डॉ. दत्ता ने कहा कि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य नही मिलता। किसानों के यहां भण्डारण की व्यवस्था नही होने के कारण अपनी फसल को तुरंत बेचना पडता है। उन्होने कहा कि सरसों के तेल का मूल्य संवर्धन करके उपभोक्ताओं को जागरूक करना होगा। ताकि उपभोक्ता तेल की उचित कीमत दे सकें इससे किसान को अपनी उपज का अधिक मूल्य मिल सकेगा। डॉ. दत्ता ने कहा कि सरसों अनुसंधान निदेशालय एवं इसके नेटवर्क केन्द्रों द्वारा आज सरसों पैदा करने वाले सभी राज्यों के लिए उन्नत फसल उत्पादन तकनीकी विकसित की जा चुकी है। और उन्हें बदलते समय के साथ-साथ परिस्.त करने का कार्य भी चल रहा है। उन्होनें किसानों से कहा कि भविश्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए इस निदेषालय के कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता कर अपना उत्पादन बढाएॅ और देष को खाद्य तेल के मामले में आत्म निर्भर बनाने के लिए वैज्ञानिकों, प्रसार कार्यकर्ताओं तथा नीति निर्धारकों के साथ मिलकर काम करें। किसानों से आग्रह किया कि
हमें तिलहनी फसलों, विशेषकर राई-सरसों का उत्पादन बढाना होगा जिसमें काफी सम्भावनाएं हैं। यह तभी सम्भव है जब इनकी खेती नवीनतम तकनीकों का प्रयोग करते हुए की जाए। इस अवसर पर सरसों अनुसंधान निदेषालय के निदेषक डा. जितेन्द्र सिंह चौहान ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि संस्थान की स्थापना का मिषन राई-सरसों की उत्पादकता बढाना, तेल की गुणवत्ता और किसानों की आजीविका में सुधार करना साथ ही, विभिन्न हितकारकों को ज्ञान आधारित संसाधन प्रबंधन प्रौद्योगिकी प्रदान करना है। हमारा विजन किसानों को सषक्त करना जिससे वे पर्यावरण के अनुकूल एवं लागत प्रभावी राई-सरसों की खेती कर गुणवत्तायुक्त तेल का उत्पादन कर सकें। डा. चौहान ने कहा कि किसानों को गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध कराने के लिए निदेषालय ने बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सन् 2005-06 में महाबीज परियोजना पूरे देष में षुरू की तथा इस केन्द्र को भी इस परियोजना में षामिल किया गया। किसानों को उच्च गुणवत्ता का बीज प्रदान के लिये इस संस्थान में बीज विधायन संयत्र की स्थापना की गई। उन्होने बताया कि निदेषालय ने 2009-10 से किसानों की सहभागिता से बीज उत्पादन नाम से एक योजना चलाई है जिसमें किसान अपने खेत पर उत्तम बीज उत्पादन कर इस निदेषालय को दे सकता है। किसानों में उत्तम बीजो के महत्व एवं प्रयोग के बारे में जागृति लाने हेतु, निदेषालय ने किसानों के लिए कृशि फसलों में बीज उत्पादन विशय पर सात दिवसीय किसान प्रषिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया है। उन्होने कहा कि संस्थान के वैज्ञानिकों के प्रयास से हाल ही के वर्षों में राई सरसों की कई किस्में विकसित हो पाई। इस निदेषालय, ने पिछले वर्श सरसों की अधिक उपज देने वाली एक नई किस्म एन.आर.सी.डी.आर.-601 का विकास किया है। एनआरसी डीआर 2 भी उन्नत उपज वाली किस्म है। किसानों के हितो के लिए यह निदेषालय सदैव तत्पर रहा है । इस अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र कुम्हेर के प्रभारी डा. अमर सिंह एवं संयुक्त निदेशक (तिलहन), कृशि विभाग बी.के. सिंह ने भी किसानों को संबोधित किया।इस अवसर पर अतिथियों द्वारा दो तकनीकी प्रसार पत्रकों ‘‘ राई/लाहा (ब्रेसिका जंुूसिया) बीज उत्पादन के लिए विभिन्न परिस्थितियों की उन्नत प्रजातियाँ’’ तथा राई-सरसों की उन्नत बीज तकनीक’’का भी विमोचन किया गया।
सरसों विज्ञान मेले में उत्कृश्ट कृशि सहभागिता एवं उन्नत तकनीकों को अपनाकर तथा अग्रिम पंक्ति प्रदर्षन के माध्यम से सरसों उत्पादन में अग्रणी योगदान के लिए और सरसों पौधा प्रतियोगिता के विजेता 35 किसानों को प्रमाण पत्र प्रदान करके सम्मानित किया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें