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रविवार, 13 मार्च 2011

एग्री बिजनेसमैन बना किसान

वैश्य परिवार में जन्मे सुधीर अग्रवाल ने खेती में देखा भविष्य
स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद शुरू किया बीज उत्पादन 
नई किस्मों के आधारीय बीज उत्पादन में बनाया रिकार्ड
सलेक्शन ब्रीडिंग से तैयार कीं धान की दो किस्में
सक्सेज स्टोरी
दिलीप कुमार यादव
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक कृषि शिक्षा डा. अरविंद कुमार की मानें तो देश के एक प्रतिशत स्नातक ही कृषि क्षेत्र में जाना चाहते हैं। इसके कारण बताना जरूरी नहीं, लेकिन मथुरा के एक पढ़े लिखे वैश्य ने खेती में वह करिश्मा कर दिखाया है जिससे उन्हें व ब्रज भूमि को एक नई पहचान मिली है। जनपद के पिछड़े इलाके (सुरीर) के गांव भूरेका निवासी किसान परिवार में 28 जुलाई 1956 को जन्मे सुधीर अग्रवाल बीज उत्पादक किसान के नाम से जाने जाते हैं। वह खुद को किसान नहीं, एग्री बिजनेसमैन कहते हैं। वह कहते हैं कि बीज उत्पादन का काम विशुद्ध ईमानदारी वाला है। इस काम में जितनी ज्यादा ईमानादारी बरती जाएगी, उतना ही फायदा होगा। वह संकर किस्म के बीजों से लेकर नई प्रजातियों के आधारीय बीज बरसों से तैयार करते आ रहे हैं। उन्होंने गोरखपुर  विवि से दर्शन शास्त्र में एमए किया।
एलएलबी मथुरा के बीएसए कॉलेज से किया। इसके बाद वकालत में उनका मन नहीं लगा। उन्हें माधुरीकुण्ड कृषि फार्म पर तैनात डा. अमर सिंह से बीज उत्पादन की प्रारंभिक जानकारी मिली। उस दौर में यह फार्म चन्द्रशेखर आजाद कृषि विवि कानपुर के अधीन था। वह 1979 से बीज उत्पादन में जुट गए। नाबार्ड के उप महाप्रबंधक ओम प्रकाश एवं इंडियन ओवरसीज बैंक की वित्तीय मदद से काम को आगे बढ़ाया। चंद किसानों की मदद से शुरू हुआ काम आज पूरे जिले और जिले से देश में फैल गया है। वर्ष 2001 से आधारीय बीज बनाने का काम शुरू किया। इसमें तत्कालीन उप कृषि निदेशक (वर्तमान में अलीगढ़ में तैनात) डा. ओमवीर सिंह, पूसा संस्थान एटिक के प्रभारी डा. जेपी शर्मा, पूसा के पूर्व निदेशक डा. एसए पाटिल, पूसा संस्थान के करनाल स्थित क्षेत्रीय कार्यायल के तत्कालीन हैड डा. एसएन सिन्हा, गेहूं निदेशालय के डा. वीएस त्यागी, सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर के तत्कालीन निदेशक डा. अरविंद कुमार, मूंग के प्रजनक वैज्ञानिक डा. यूवी सिंह से विभिन्न फसलों के बीज उत्पादन की जानकारी लेते रहे तथा स्वयं बीज तैयार करते रहे। साथ ही ब्रीडर बीज लाकर गेहूं, जौ, धान, सरसों, मूंग, अरहर, गाजर, आदि फसलों के आधारीय बीज तैयार करने लगे हैं। नई किस्मों के बीजों का बल्क में उत्पादन कर उन्हें बेचने के लिए पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में बहुत बड़ा बाजार मिला। बाद में पूसा संस्थान ने उनके साथ अनुबंध तक कर डाला। वह देश के पहले किसान हैं जिनके साथ पूसा ने अनुबंध किया है। इसके बाद पूसा की किस्मों के ब्रीडर बीज मिलने की उनकी दिक्कतें कम हो गईं। उन्होंने सरसों बीज उत्पादन के लिए सरसों निदेशालय भरतपुर को भी एक साल पूर्व अनुबंध के लिए पत्र दिया है, लेकिन इस दिशा में निदेशालय की ओर से कोई प्रगति नहीं हुई है। वह सरसों बीज उत्पादन में भी महत्वपूर्ण कदम बढ़ाना चाहते हैं। अभी तक विभिन्न संस्थानों की सरसों की किस्मों का बीज तैयार कर रहे हैं। देश में सैकड़ों की संख्या में स्थित कृषि संस्थानों द्वारा तैयार नई किस्मों का बीज तैयार करना और उसे किसानों तक पहुंचाने का काम वह बखूबी कर रहे हैं। बीज वाले किसान के नाम से विख्यात इस शख्स ने वह कर दिखाया है जिसे सरकारी संस्थान नहीं कर पाए। उनका कहना है कि अनुसंधान में लगे वैज्ञानिकों का काम नई तकनीकि व किस्में विकसित करना है। उन्हें अपने फार्म पर तैयार कर अच्छी किस्मों को प्रमोट करने का काम उनका है। वह कहते हैं कि गेहूं की 2733 किस्म मथुरा के इलाके के लिए रिकमंडेड नहीं, लेकिन राया, अड़ींग, भूरेका, सुरीर आदि इलाकों में किसानों ने पक्के बीघा में उसकी उपज 42 मन बीघा तक ली है। इसी तरह धान की पूसा सुगंध दो किस्म यहां के लिए नहीं बताई गई है, लेकिन किसान इसे बहुतायत में बोते हैं और उन्हें अच्छी उपज मिलती है। मथुरा, आगरा, अलीगढ़ के इलाके के लिए आइसीएआर द्वारा सुगंध तीन की संस्तुति की गई है किंतु किसान पूसा की सभी किस्मों से यहां अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। उनके पास इस समय आगामी सीजन के लिए पूसा बासमती एक (पीवीवन) या मुच्छड़, पूसा सुगंध दो, पूसा सुगंध तीन, पूसा सुगंध चार, बासमती 1121, पूसा सुगंध पांच, पूसा सुगंध छह 1401, पूसा इम्प्रूव्ड बासमती 1460, एचके आर 47, एचकेआर 127, क्रांति, महामाया, वल्लभ 20, वल्लभ 21, रनवीर बासमती, तलावड़ी बासमती, सीएसआर 30, सीएसआर 36, पंत 16 का आधारीय बीज तैयार कर चुके हैं। भवानी सीड्स के नाम से उनका ब्रांड एमपी, पंजाब, हरियाणा एवं यूपी में बखूबी जाना जाता है। उन्होंने सलेक्शन ब्रीडिंग से दो नई किस्म भूरेका बासमती एक व दो तैयार की हैं। वह कहते हैं इन दोनों किस्मों को वह समस्त ग्रामीणों की संपदा बनाएंगे। उन्होंने बताया कि इस साल उन्होंने गेहूँ का 7 हजार कुंतल, धान का 4 हजार कुंतल, 200 कुंतल सरसों,100 कुंतल मूंग व 100 कुंतल अरहर का बीज तैयार किया है। अन्य लोगों से अलग वह यह करते हैं कि नई किस्मों को अपनाते हैं। उनका मत है कि पुरानी किस्मों की जानकारी किसानों को है। नई किस्में तभी संस्तुत होती हैं जबकि उनमें पुरानी किस्मों से ज्यादा उपज देने की क्षमता हो। बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में नई किस्में ही टिक सकती हैं। इसलिए किसानों को इन्हें खेती के घाटे की भरपाई के लिए तेजी से अपनाना होगा। वह किसानों और कृषि को घाटे से उबारने के लिए ही प्रयास कर रहे हैं। अपने 100 एकड़ के फॉर्म के अलावा वह जिले के अन्य क्षेत्रों के किसानों से भी बीज उत्पादन कराते हैं। किसानों को इसके एवज में सरकारी समर्थन मूल्य एवं मण्डी से ऊंची दरों का भुगतान करते हैं। वह अपने इस काम के लिए अनेक कृषि अनुसंधान संस्थानों से पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। खुद को आधुनिक तकनीकों से जोड़ने के लिए वह देशभर में कृषि मेले एवं गोष्ठियों में भी भाग लेते रहते हैं। उनसे संपर्क के लिए उनके 9412278153 नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।
 

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