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रविवार, 9 जून 2013

टमाटर की लाली देगी खुशहाली


भरतपुर-हिण्डौन मार्ग पर बयाना कस्बे से मात्र 4 किलोमीटर दूर बसा ऐतिहासिक गांव सिकन्दरा।
यहां प्रतिदिन प्रात: के समय 5-6 वाहन टमाटर लेकर शहरों की ओर दौड़ते नजर आते हैं।
औसतन 30 क्ंिवटल टमाटर इस छोटे से गांव से मंडी में बिक्री के लिए जाते हैं। इससे प्रतिदिन ग्रामीणों को करीब 25 हजार रुपये की आय होती है। यह सिलसिला नवम्बर माह से शुरु होकर मार्च तक चलता है। कुछ यही हाल मथुरा जनपद के गोवर्धन ब्लाक स्थित गांव बोरपा का है। कभी दूध का धंधा करने वाले लोग अब गर्मियों में टमाटर की खेती कर अच्छा पैसा कमा रहे हैं।
मुगलकाल में बसा सिकन्दरा गांव करीब 500 परिवारों की बस्ती है लेकिन जनसंख्या वृद्घि, कृषि भूमि का निरन्तर बंटवारा होने, कृषि लागत बढ़ने से ग्रामीणों का ध्यान परम्परागत खेती से हटने लगा। गांव के बनैसिंह, लोकेन्द्र व बिजेन्द्रसिंह ने गेहूं, सरसों व अन्य परंपरागत् खेती के स्थान पर सब्जीवा¶ी फस¶ों का काम शुरू किया। यद्यपि इन लोगों के पास नवीन तकनीक व उन्नत बीजों का अभाव था जिसकी वजह से इन्हें कोई खास मुनाफा नहीं हुआ। बनैसिंह सैनी बताते है कि उन्होंने टमाटर की कंचन नामक किस्म की बुवाई की लेकिन माथाबंदी का रोग लग जाने से उत्पादन इतना कम हुआ कि लागत भी वसूल नहीं हो पाई। इसके अलावा सर्दी के कारण कुछ फसल खराब भी हो गई। ऐसी स्थिति में गांव के करीब दो दजर्न किसानों ने टमाटर उत्पादन बंद कर दिया और इसके स्थान पर गोभी, मिर्च, बैगन आदि सब्जी वाली फसलें लगाना शुरू किया, लेकिन इन फस¶ों में मेहनत, लागत अधिक व मुनाफा कम मिल पाता।
करीब 8 वर्ष पूर्व संस्था लुपिन ह्यूमैन वैलफेयर एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन ने सिकन्दरा गांव को उसके सर्वागीण विकास के लिए गोद लिया। संस्था के कृषि वैज्ञानिकों को सब्जी उत्पादक किसानों ने अपनी समस्या बताई। इसके बाद संस्था ने उन्हें सहयोग करना शुरू किया ।
आज इस गांव के किसान टमाटर की खेती के विशेषज्ञ हो गए हैं।
टमाटर उत्पादक किसान एक हैक्टेयर से करीब डेढ़ लाख रुपये का मुनाफा लेने लगे हैं।
इसके बाद भी किसानों ने मुनाफा बढ़ाने के ¶िए अन्य प्रयोग किए।
टमाटर उत्पादक किसानों ने टमाटर की फस¶ से अधिक मुनाफा ¶ेने के लिए रासायनिक खाद के स्थान पर वर्मी कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना शुरू किया, जिससे उत्पादन बढ़ गया। दोमट मिट्टी व मीठा पानी होने के कारण किसानों को टमाटर व अन्य सब्जियों की भरपूर पैदावर मिलती है। इसके अलावा टमाटर विक्रय के लिए बयाना, हिंडौन, सूरौठ, भरतपुर, आगरा व मथुरा की मंडियां अधिक दूर नहीं होने के कारण इन्हें ज्यादा परेशानी नहीं होती।
कभी-कभी भाव नीचे च¶े जाने से दिल्ली या बड़े शहरों में ले जाना पड़ता है। फसल ज्यादा होने पर न तो वाहन का झंझट होता है और ना ही ले जाने का। इसी तरह एक दशक पूर्व तक दूध का कारोबार करने वाले मथुरा जनपद के बोरपा गांव के किसानों ने टमाटर की खेती को अपनाया।
उनकी प्रेरणा का स्नेत बने उनके निकट के गांव अहमल कलां के किसान रमेश चौधरी। उन्होंने 1999 में हिन्दुस्तान में आए टमाटर के पहले हाइब्रिड बीज से ही खेती की शुरुआत की और अपनी एक एकड़ जमीन में ही टमाटर की खेती से एक दजर्न लोगों के परिवार को खुशहाल जीवन दिया है। उनके अनुभव का लाभ बोरपा के किसानों ने लिया। आज यहां के दजर्नों किसान हर साल टमाटर की खेती करते हैं। अपनी इस सफलता की लालिमा से किसान अभिभूत हैं।
बोरपा गांव के किसानों ने टमाटर की खेती को अपनाया। उनकी प्रेरणा का स्नेत बने उनके निकट के गांव अहमल कलां के किसान रमेश चौधरी। उन्होंने 1999 में हिन्दुस्तान में आए टमाटर के पहले हाइब्रिड बीज से ही खेती की शुरुआत की और अपनी एक एकड़ जमीन में ही टमाटर की खेती से करीब एक दजर्न लोगों के परिवार को खुशहाल जीवन दिया है।
 

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