पारंपरिक किस्मों के संरक्षण और सलेक्शन ब्रीडिंग के आधार पर किसानों द्वारा भी फसलों की सैकड़ों किस्मों का संरक्षण और विकास किया जा रहा है। इस तरह के कार्य में रत किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। इन किस्मों का पंजीकरण भी वैज्ञानिकों की तरह पीपीवी एफआर द्वारा किया जा रहा है। अनूठे प्रयोग कर रहे किसान इस प्राधिकरण के माध्यम से अपने अनुसंधान को सुंरक्षित रखने के साथ सरकारी लाइसेंस पाने के अधिकारी भी हो जाते हैं। रजिस्ट्रार जर्नल आरसी अग्रवाल ने बताया कि प्रजनकों को किस्म उत्पन्न करने, बेचने, विपणन करने, वितरित करने, आयात या निर्यात करने का एकमात्र अधिकार प्राप्त है। प्रजनक को पंजीकरण के लिए आवेदन दाखिल करने और प्राधिकरण द्वारा अंतिम निर्णय लेने के बीच की अवधि के दौरान किसी भी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए किसी भी गलत कार्य के विरुद्घ उसकी किस्म की अनंतिम सुरक्षा का भी अधिकार है। अनुसंधानकर्ता अन्य किस्म विकसित करने के लिए प्रयोग या अनुसंधान हेतु किस्म का उपयोग कर सकता है। किस्मों के विकास और संरक्षण का लाभ एक व्यक्ति और समूह दोनों को प्रदान किया जाता है। धारा 41 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति किसी ग्राम समुदाय की ओर से क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है, बशर्ते कि गांव या स्थानीय समुदाय में पीपीवी और एफआर अधिनियम, 2001 के अंतर्गत पंजीकृत की गई किसी किस्म के विकास में उल्लेखनीय रूप से योगदान किया हो। क्षतिपूर्ति की राशि का निर्धारण प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा और राशि राष्ट्रीय जीन निधि में जमा की जाएगी। कृषकों के अधिकार :- अधिनियम के अंतर्गत कृषक को इस प्रकार परिभाषित किया गया है। ‘कोई भी वह व्यक्ति जो फसलें उगाता है और स्वयं भूमि पर खेती करता है; खेती का प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण करते हुए फसलें उगाता है या किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर फसलें उगाता है; अलग-अलग या संयुक्त रूप से फस¶ प्रजातियों को संरक्षित और परिरक्षित करता है या किसी अन्य व्यक्ति के साथ किसी वन्य प्रजाति या परंपरागत किस्मों को संरक्षित व परिरक्षित करता है या चयन के माध्यम से ऐसी वन्य प्रजातियों या परंपरागत किस्मों का मूल्यवर्धन करता है और उनके उपयोगी गुणों की पहचान करता है’। बीज पर कृषकों का अधिकार :- अपनी फसलों से प्राप्त अपने बीज को बचाने व बुवाई, पुन: बुवाई, विनिमय और अन्य किसानों के साथ भागीदारी या बिक्री के ¶िए अपने बीज को बचाना। कृषक किस्म वह किस्म है जिसे किसानों ने अपने खेतों में विकसित किया है अथवा किसी किस्म की वह वन्य संबंधी या भू- प्रजाति जिसके बारे में किसानों को सामान्य सा ज्ञान है। परंपरागत किस्मों के सबलीकरण का अधिकार :- कृषकों द्वारा विकसित नई किस्मों और परंपरागत किस्मों का पंजीकरण कराया जा सकता है। कृषकों की किस्म की सुरक्षा की अवधि वही है जो किसी नई किस्म की है। कृषक किस्म का प्राधिकृतिकरण कोई भी वह व्यक्ति जो कृषक किस्म से अनिवार्य रूप से व्युत्पन्न किस्म के पंजीकरण के ¶िए आवेदन करता है उसे प्रजनक (कृषक) से प्राधिकार प्राप्त करना होगा और उस किसान-उन किसानों की सहमति लेनी होगी जिन्होंने किस्म के परिरक्षण या विकास में योगदान दिया है। कृषकों की किस्मों के पंजीकरण के आवेदन दाखिल करने के लिए कोई शुल्क नहीं है और उन्हें इस संबंध में किसी कानूनी कार्रवाई पर लगने वा¶े शुल्क से भी छूट दी गई है। कृषकों को ‘आवेदक द्वारा दाखिल किए जाने वा¶े उस ह¶फनामे से भी छूट है कि पंजीकृत कराई जाने वा¶ी किस्म में कोई ऐसा जीन या जीन क्रम नहीं है जिसमें निरवंश या टर्मिनेटर प्रौद्योगिकी शामिल हो’। ¶ाभ में भागीदारी : यदि किसी कृषक या आदिवासी समुदाय ने पूर्वजों के रूप में प्रयुक्त की गई किस्मों में कोई योगदान दिया है और उन किस्मों से नई किस्म का विकास हुआ है तो उस नई किस्म से अर्जित लाभ में उस समुदाय की समान भागीदारी होगी। लाभ का अंश राष्ट्रीय जीन निधि से पात्र व्यक्ति, समुदाय या संस्था को वितरित किया जा सकता है। यह पुरस्कार किसानों द्वारा पौधों की किस्मीय सम्पदा के संरक्षण में निभाई गई उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए दिया जाता है। पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली ने 22 मई को नास परिसर में पुरस्कार एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया। तारिक अनवर, राज्य मंत्री (कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग) ने मुख्य अतिथि के रूप में पधार कर पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर हरियाणा किसान आयोग के वर्तमान अध्यक्ष एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डॉ़ आरएस परोदा, इस प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष डॉ़ एस नागराजन, पीएल गौतम, डा. एस पाटिल आदि मौजूद रहे। आयोजन में पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार के अंतर्गत 10 लाख रुपये नकद, एक प्रशस्ति-पत्र तथा एक स्मृति चिह्न भी प्रदान किया गया। पादप जीनोम संरक्षक कृषक पुरस्कारों के अंतर्गत एक लाख रुपये नगद, एक प्रशस्ति-पत्र तथा एक स्मृति चिह्न प्रदान किए जाते हैं जो 10 प्रगतिशील किसानों को दिए गए। इनमें पुरस्कार पी देवकांत इम्फा¶, महावीर सिंह आर्य चुरू, एन वासन कन्नूर, पुरानंद वैंकटेश भाट कर्नाटक, जय प्रकाश ंिसंह, जाखिनी, वाराणसी, प्रवत रंजन डे, पानपारा, नादिया, उषा ग्राम ट्रस्ट, नादिया, चंद्रशेखर सिंह, साइबी जॉर्ज, कल्लीनगल, पट्टीकाड, त्रिशुर, केरल और नरेन्द्र सिंह सिपानी, मंदसौर, मध्य प्रदेश को प्रदान किए गए। इनके अतिरिक्त 15 कृषकों तथा कृषक समुदायों को पादप जीनोम संरक्षक कृषक सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बो¶ते हुए तारिक अनवर राज्य मंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग ने कृषक समुदायों व कृषकों को भू- प्रजातियों के संरक्षण तथा टिकाउ कृषि के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट तथा सराहनीय कार्य के ¶िए बधाई दी क्योंकि इससे उच्च उत्पादन प्राप्त होता है जिससे किसानों को अधिक आय सुनिश्चित होती है। इस अवसर पर पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष डॉ़ आरआर हंचिनाल ने कहा कि हमारे किसान देश की कृषि जैवविविधता के संरक्षक हैं और वर्तमान कृषि उनकी पिछली पीढ़ियों के कठोर परिश्रम का परिणाम है। प्राधिकरण किसानों एवं कृषक समुदायों को पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण व परिरक्षण में निभाई गई उनकी भूमिका के लिए उन्हें पुरस्कृत, सम्मानित व प्रोत्साहित करके अपना एक अधिदेश पूरा कर रही है। |
किसान भाइयों को अत्याधुनिक खेती की तकनीकों की जानकारी मिलने का सरल साधन।
रविवार, 9 जून 2013
किस्म संरक्षक किसानों को मिलते हैं पुरस्कार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें