किसानों को अपने और अपने परिवार के खाने के लिए इस तरह की किस्मों को भी लगाना चाहिए। अन्यथा परंपरागत किस्में खत्म हो जाएंगी। वर्तमान में काला नमक का शुद्ध बीज हर जगह नहीं मिलता। इसके भी कई कारण हैं। परंपरागत किस्मों की उपज कम मिलती है और फसल आने पर हर जगह कारोबारी कम उत्पाद की खरीद भी उचित मूल्य पर नहीं करते। परंपरागत किस्मों का उत्पादन भले ही कम रहता हो, लेकिन इनकी गुणवत्ता के चलते अच्छी कीमत उपज की भरपाई कर देती हैं। काला नमक लम्बी अवधि की प्रकाश संवेदी किस्म है। यह 145 दिन में पककर तैयार होती है। इसका पौधा डेढ़ मीटर तक लम्बा हो जाता है। इस किस्म को किसानों को थोड़ा अगेती लगाना चाहिए ताकि वह अन्य कम समय में पकने वाली किस्मों के साथ ही पक जाए अन्यथा जगली पशुओं के हमले से फसल बर्वाद हो जाती है। इसकी सुगंध के चलते पशु दूर से ही खिंचे चले आते हैं। इसका धान देखने में काला होता है, लेकिन अंदर से चावल सफेद निकलता है। इतना ही नहीं पतला छिलका होने के कारण धान से चावल भी करीब 70 प्रतिशत निकलता है। प्रति हैक्टेयर उपज करीब 30 कुंतल मिलती है। इसका बीज पॉर्टिसिपेटरी रूरल डेवलपमेंट फाउण्डेशन गोरखपुर एवं राष्ट्रीय बीज निगम से प्राप्त किया जा सकता है। खाने में स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होने के साथ यह किस्म बेहद सुपाच्य होती है। इस किस्म का चावल खाने के बाद पेट में भारीपन नहीं होता। |
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रविवार, 9 जून 2013
लगाएं परंपरागत काला नमक धान
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