कृषि विज्ञानियों की कमी को पूरा करने को पीजी लेवल पर जाएगा आईसीएआरः एएसआरबी चेयरमैन सीडी माई से मुलाकत
मथुरा। कृषि वैज्ञानिक चयन मण्डल के अध्यक्ष सीडी माई ने कहा कि देश में कृषि विज्ञानियों की कमी की भरपाई के लिए हम सीधे पीजी लेवल पर विश्वविद्यालयों में जाने की तैयारी कर रहे हैं। अभी हमने 100 विज्ञानी यूएस और अमेरिका के लिए हैं। देश की कृषि, पश्ुापालन और उससे जुडे़ कार्यांे को सही तरीके से अंजाम देने के लिए युवाओं को आकर्षित किया जाएगा। ग्लोवल वॉर्मिंग से कृषि क्षेत्र में अनेक दिक्कतें आ रही हैं। सेब का रस कम हो रहा है तो वासमती धान की सुगंध कम हो रही है। इससे बचाव के लिए अनुसंधान कार्यों के लिए 300 करोड़ का पाइलेट प्रोजैक्ट शुरू किया है।
वह भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के 17 वें वार्षिक मेले में भाग लेने आए थे। दिल्ली से मथुरा होते हुए भरतपुर जाते समय खास मुलाकात में उन्होंने कहा कि मिडिल स्टेज में वैज्ञानिकों की कमी है। नीचे के लेवल पर तो थोडे़ से पदों के लिए 22 हजार प्रार्थना पत्र आते हैं लेकिन इससे अगली कड़ी को स्थायी बनाने के लिए वैज्ञानिकों के पैकेज भी अच्छे किए गए हैं। चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता के सवाल पर उन्होंने कहा कि पात्र लोगों को बुलाया जाता है। उनसे जब पूछा गया कि कई विज्ञानियों को अपना कॉल निकलवाने के लिए कोर्ट तक की शरण लेनी पड़ी और कई को कोर्ट जाने का समय ही नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि कार्ट में हमारे बहुत कम मामले हैं।
आईसीएआर के संस्थानों में किसी दूसरे क्षेत्र के विशेषज्ञों को रखने से संस्थान से जुडे़ अनुसंधानों के प्रभावित होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि किसी निदेशक के पास 50 प्रतिशत काम तो प्रशासनिक होता है। बाकी जानकारी संस्थान में काम करने के दौरान हो जाती है। इस लिए जरूरी नहीं भेंसों के अनुसंधान संस्थान का निदेशक भेंस विशेषज्ञ ही बनाया जाए। लेकिन वह इस सवाल को टाल गए कि दशकों से किसी पशु विशेष के लिए काम करने वाले विज्ञानी का इसमें क्या दोष है।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेन्ज बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। इससे निपटने को आईसीएआर ने 300 करोड़ का पाइलेट प्रोजेक्ट शुरू किया है। इससे क्लाइमेट चेन्ज की चुनौतियों से निपटने की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। उन्होंने कम पानी वाले इलाकों में ड्रिप इरीगेशन, टपक सिंचाई अपनाने की सलाह दी। कहा कि गुजरात में 50 प्रतिशत किसान इसे अपना रहे हैं। उनकी उत्पादकता बढ़ने का भी यही कारण है।
उन्होंने कहा कि यूरोप में जो किसान बोलता है सरकार वही पालिसी बनाती है। यहां जिस तरह से लोगों का खेती से रुझान हट रहा है उससे लगता है कि हालात यूरोप जैसे होने वाले हैं। कृषि क्षेत्र में अपार संभावना हैं। वह दिन दूर नहीं जब हम किसानों के अनुसार नीतियां बनाने को विवश होंगे। उन्होंने बीटी कॉटन के सवाल पर कहा कि अब हमारे विज्ञानी अपनी तकनीक से बीटी पर काम कर रहे हैं। दो राज्यों में उनके द्वारा जीन परिवर्तित बीटी के ट्रायल लगाए गए हैं। मॉनसेन्टो जैसी कंपनियों को बीटी के नाम पर रायल्टी के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने खुद की बीटी कॉटन तैयार कर ली है। पहले इसका लाभ चाहे जिसे मिला हो लेकिन आगे से एसा नहीं होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें