सिंधिया परिवार ने पंजाब तक अंग्रेजों से किया मुकाबला
समकालीन राजाओं ने पूर्वाग्रहों के चलते नहीं दिया साथ
अंजन गांव की संधि के बाद भारत में प्रवेश के अन्य प्रमुख रास्ते खुले
मथुरा। ब्रज के इतिहास में 1857 से कीमती कोई काल है तो वह 1803 का समय है। यह वह दौर था जब अंग्रेज मथुरा, आगरा, भारतपुर को फतह कर पंजाब आदि राज्यों पर आधिपत्य के लिये रास्ता तलाश रहे थे।
आयरलैण्ड का सेनानी लार्ड लेक कानपुर से दिल्ली तक आया। यहाँ से उसने मथुरा का रुख किया। 11 हजार की उसकी सेना का मुकाबला मध्यप्रदेश के शासक दौलतराव सिंधिया ने किया। मालवा राजपूतों से ग्वालियर का किला छीनने के बाद उन्होंने भरतपुर रियासत को अपने अधीन किया। राजा सूरजमल की बेवा पत्नी रानी किशोरी उस दौर की बहुत मर्मज्ञ राजनीतिज्ञ मानी जाती थीं। उन्होंने अपनी चतुरता से सिंधिया से रियासत के कुछ हिस्से ले लिये। उन्होंने अंगे्रजों के आधिपत्य के समय भी राजघराने की लाज को इसी तरह बचाए रखा।
इधर सिंधिया का अंग्रेजों से युद्ध शुरू होता है। उधर मथुरा की कुछ जागीरों के मालिक इंदौर के शासक जसवंत राव व भरतपुर राजघराने के राजा रंजीत सिंह अलग खड़ा दिखता है। सिंधियाओं के सताए दोनों लोग अंग्रेजों की गुलामी का आकलन नहीं कर पाये और इसका लाभ अंग्रेजों ने जमकर उठाया।
सिंधिया अंग्रेजों की 11 हजारी फौज से लड़ते हुए पंजाब तक भागा। इसके बाद 30 दिसंबर 1804 को अंजन गांव की संधि हुई। इस संधि के बाद ही अंग्रेजों के लिये हिन्दुस्तान के बहुत सारे इलाकों में जाने का रास्ता साफ हुआ। कुछ इतिहासकार सिंधिया के विषय में यह कहते हैं कि वह अंग्रेजों से मिल गया। कुछ यह भी लिखते हैं कि भरतपुर रियासत पर सिंधिया द्वारा कब्जाने के विरोध में सिंधिया के अंग्रेजों से जूझने के दौरान पाँच हजार सैनिक भरतपुर रियासत ने अंग्रेजों के पक्ष में भेजे। सिंधिया की सेना के सेनापति डिगोई और पेरिन फ्रांसीसी थे। डिगोई के अधीन मथुरा और पेरिन के अधीन नौहझील, माँट, राया आदि अलीगढ़ जिले की सीमा वाला इलाका आता था। यह सेना किसी भी मामले में अंग्रेजों से कमजोर नहीं थी लेकिन किसी इलाके में सिंधिया को सहयोग न मिलने से उसे पराजय का समाना करना पड़ा।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट पोतरा कुण्ड का निर्माण इसी सिंधिया ने करबाया। इसके अलावा वृन्दावन में टकसाल बनाई। इसमें वर्तमान के पांच कि शिक्के के बराबर का चांदी का रुपया छपता था। इसे वृन्दावनिया रुपए के नाम से जाना जाता था। सिंधिया के हारने के बाद यह टकसाल भरतपुर में शुरू हुई। यहां भी यह रुपया इसी नाम से जाना गया।
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