अख्तियार खाँ बना ब्रज का मंगल पाण्डे, कंपनी कमांडर की गाली का जबाव गोली से दिया
दिलीप कुमार यादव मथुरा। फौलादी सीनों पर ब्रिटिश हुकूमत के वार सहने वाले क्रांतिकारियों की जननी रही ब्रजभूमि में अनेक रणवांकुरों ने हर काल में अपनी अमिट छाप छोड़ी। यहां 1857 के गदर के समय का हीरो एक सिपाही अख्तियार खाँ रहा। उसने बैरकपुरा छावनी में मंगलपाण्डे से एक कदम आगे बढ़कर अपने कंपनी कमांडर को गोली से उड़ा दिया।
1857 के झारोखे में झांके तो दास्तां दिल दहला देने वाली है। बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश के काफी बड़े भूभाग पर विद्रोह की हुंकार सुनाई देने लगी। इस आग में जनपद भी बुरी तरह झुलस उठा। यह कहानी भी किताबी पन्नों तक सिमट गई। यहां के एक मुसलमान सैनिक के खून में उठा ज्वार अपने लेफ्टीनेंट को गोली मारकर उतारा। यह घटना भले ही मंगल पांडे के बाद घटी, लेकिन ब्रज के इस मंगलपांडे को बिसार दिया गया।
30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद बिद्रोही सैनिक ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहे राजकोष के साढ़े चार लाख
रुपयों को लूट लिया। कुछ तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिये गये। इन्हें लूटने के लिये सिपाही और शहर वासी दिन भर जूझते रहे। नेटिव इन्फ्रेन्ट्री के विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए। 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन व पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की। सैनिकों के विद्रोह की ज्वाला अभी न थमी। उन्होंने अंग्रेजों देने के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित केशीघाट पर मौत की नींद सुला दिया। तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर थार्निल से जनपद के हालात नहीं संभले तो वह आगरा भाग गया। बर्टलन की नंगी लाश कलक्टर को नाले में पड़ी मिली। मथुरा ए डिस्ट्रिक मेमायर के लेखक एफएस ग्राउस व अन्य श्रोतों से ज्ञात होता है कि जंगे आजादी की जंग में पूरा जिला खदबदा उठा। बाद में इस क्रांतिकारी सिपाही को सदर बाजार इलाके में ही फांसी देदी गई। यहां अब उसकी कोई स्मृति शेष नहीं है। बाकी है तो बस बर्टलन की क्षत विक्षत कब्र।
इस विद्रोह को दबाने के लिये विशेष सैनिक टुकड़ी बुलाई गई। इन लोगों ने छाता की सराय में बैठे 22 जमीदारों को गोलियों से भून दिया। मथुरा के बक्र भटियार ने गांधी पार्क जिसका पुराना नाम पुख्ता सराय था, में मुहम्मदी झंडा फहराया। इससे खफा थार्निल ने उसे फांसी देदी।
अड़ींग के क्रांतिकारियों ने भी खजाना लूटने का प्रयास किया। यहां के सत्तावन ठाकुर जाति के लोगों को बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक टीले पर फांसी दे दी। नानकपुरा गांव के उमराव बहादुर ने दिल्ली में विदेशियों से लड़ते हुए जान दी। रामधीर सिंह व हरदेव सिंह के नेतृत्व में पांच हजार क्रांतिकारियों ने अलीगढ़ में क्रांति का बिगुल फूंका। सादाबाद क्षेत्र की कमान कुरसंडा के बाबा देवकरन एवं जालिम सिंह ने संभली। यहां भी कई क्रांतिकारियों को बाद में पेड़ों पर लटकाकर फांसी दे दी गई।
1857 के झारोखे में झांके तो दास्तां दिल दहला देने वाली है। बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश के काफी बड़े भूभाग पर विद्रोह की हुंकार सुनाई देने लगी। इस आग में जनपद भी बुरी तरह झुलस उठा। यह कहानी भी किताबी पन्नों तक सिमट गई। यहां के एक मुसलमान सैनिक के खून में उठा ज्वार अपने लेफ्टीनेंट को गोली मारकर उतारा। यह घटना भले ही मंगल पांडे के बाद घटी, लेकिन ब्रज के इस मंगलपांडे को बिसार दिया गया।
30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद बिद्रोही सैनिक ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहे राजकोष के साढ़े चार लाख
रुपयों को लूट लिया। कुछ तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिये गये। इन्हें लूटने के लिये सिपाही और शहर वासी दिन भर जूझते रहे। नेटिव इन्फ्रेन्ट्री के विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए। 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन व पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की। सैनिकों के विद्रोह की ज्वाला अभी न थमी। उन्होंने अंग्रेजों देने के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित केशीघाट पर मौत की नींद सुला दिया। तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर थार्निल से जनपद के हालात नहीं संभले तो वह आगरा भाग गया। बर्टलन की नंगी लाश कलक्टर को नाले में पड़ी मिली। मथुरा ए डिस्ट्रिक मेमायर के लेखक एफएस ग्राउस व अन्य श्रोतों से ज्ञात होता है कि जंगे आजादी की जंग में पूरा जिला खदबदा उठा। बाद में इस क्रांतिकारी सिपाही को सदर बाजार इलाके में ही फांसी देदी गई। यहां अब उसकी कोई स्मृति शेष नहीं है। बाकी है तो बस बर्टलन की क्षत विक्षत कब्र।
इस विद्रोह को दबाने के लिये विशेष सैनिक टुकड़ी बुलाई गई। इन लोगों ने छाता की सराय में बैठे 22 जमीदारों को गोलियों से भून दिया। मथुरा के बक्र भटियार ने गांधी पार्क जिसका पुराना नाम पुख्ता सराय था, में मुहम्मदी झंडा फहराया। इससे खफा थार्निल ने उसे फांसी देदी।
अड़ींग के क्रांतिकारियों ने भी खजाना लूटने का प्रयास किया। यहां के सत्तावन ठाकुर जाति के लोगों को बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक टीले पर फांसी दे दी। नानकपुरा गांव के उमराव बहादुर ने दिल्ली में विदेशियों से लड़ते हुए जान दी। रामधीर सिंह व हरदेव सिंह के नेतृत्व में पांच हजार क्रांतिकारियों ने अलीगढ़ में क्रांति का बिगुल फूंका। सादाबाद क्षेत्र की कमान कुरसंडा के बाबा देवकरन एवं जालिम सिंह ने संभली। यहां भी कई क्रांतिकारियों को बाद में पेड़ों पर लटकाकर फांसी दे दी गई।
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