आईसोपाम योजना के एडीशनल डायरैक्टर प्रद्युम्न त्रिपाठी ने कहा
सरसों का क्षेत्रफल बना हुआ है स्थिर, बढ़ाने के लिए करना होगा और काम
मथुरा। प्रदेश में तिलहनी फसलों के हालात अच्छे नहीं हैं। अधिकारी लाख कहें लेकिन किसान दूसरी फसलों को अपनाते जा रहे हैं। प्रदेश में कपास की फसल का क्षेत्रफल बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। यह जानकारी तिलहन विकास की आईसोपाम योजना के प्रदेश के एडीशनल डारेक्टर डा. प्रद्युम्न त्रिपाठी ने खास मुलाकात में दी।
उन्होंने बताया कि तिलहन का रकबा पिछले साल के मुकाबले घटा नहीं है। कुल 9 लाख हैक्टेयर में प्रदेश में तिलहन की खेती हो रही है। आगरा एवं अलीगढ़ मण्डल में तिलहनी सरसों की मुख्य फसल होती है। इस लिए यहाँ किसानों के यहाँ 300 प्रदर्शन लगाए गए हैं। इन प्रदर्शनों के माध्यम से पड़ौसी किसानों को उन्नत किस्मों का पता चल सकेगा। जब उनसे पूछा गया कि किसानों वही पुरानी किस्में प्रदर्शने के लिए दी जा रही हैं जबकि सरसों अनुसंधान निदेशालय निकट के भरतपुर में है। यहां की एनआरसी डीआर-2, एनआरसी एचबी 506 आदि किस्में दोनों मण्डलों के लिए उपयुक्त हैं। इन किस्मों का बीज खरीदकर किसानों को क्यों नहीं दिया जाता। इन किस्मों का परीक्षण केवीके के वैज्ञानिक किसानों के यहाँ करा चुके हैं। उन्होंने कहा कि वह उप निदेशक कृषि से कहेंगे कि आगे से इन किस्मों की डिमांड •ोजें।
उन्होंने बताया कि प्रदेश में 6 लाख हैक्टेयर में सरसों एवं 2 लाख हैक्टेयर में तिल की खेती है। इसके अलावा पिछले साल प्रदेश में कपास की खेती 4 हजार हैक्टेयर में हुई थी। इसका क्षेत्र बढ़ाया जाना है। इसे आगामी सीजन में छह हजार हैक्टेयर में करना है। उन्होंने कहा कि आने वाले कल में किसानों को अपना फसल चक्र बदलना होगा। गेहूं का मामा आदि खरपतवार बगैर फसल चक्र बदले खत्म नहीं होगा। सरकार हर स्तर पर फसलों के संतुलन को बनाए रखने का प्रयास कर रही है।
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