होली चलते जलते हैं यहाँ के सैकड़ों कलाकारों के घर में चूल्हे
मथुरा। किसानों के हाथों हल व इसे खींचते बैलों की जोड़ी के साथ लोकगीतों की गुनगुनाहट ट्रक्टरों की हुर्र-हुर्र में कहीं खो गई है। होली और ब्रज दोनों एक दूसरे के पर्याय लगते हैं। यहाँ होली गायन की प्राचीन परंपरा है लेकिन इसे भी अब नृत्य ने गौड़ कर दिया हैँ। चरकुला नृत्य, मयूर नृत्य, फूलों की होली आदि डांस से जुडेÞ मनोराम कार्यक्रमों ने विशुद्ध गायन को पीछे छोड़ दिया है। होली का यहाँ के सभी कलाकार इंतजार करते हैं। यूंतो यहाँ के स्थापित कलाकारों के पास पूरे साल कार्यक्रम रहते हैं लेकिन बाकी कालाकारों के घर परिवार का खर्चा इन्हीं त्योहारों के सीजन में चलता है।
ब्रज की ख्यातिलब्ध कलाकार वंदना सिंह के पास पूरे साल कार्यक्रम रहते हैं। उन्होंने बताया कि होली पर कार्यक्रम बहुत ज्यादा होते हैं। हमारे पास अपने क लाकार हैं। वह किसी अन्य ग्रुप के साथ नहीं जाते। अपने कार्यक्रमों का स्तर बनाए रखने के लिए उनके पास पूरे साल ही बुकिंग रहती है।
शालिनी शर्मा ने बताया कि होली पर ब्रज के कलाकारों के पास काम बढ़ ही जाता है। होली की श्री राधा कृष्ण की लीलाएं देश विदेश में होती हैं। कवि मनवीर मधुर ने बताया कि एक पखवाड़े में ही 10 से ज्यादा कार्यक्रम के लिए वह बुक हैं। हालांकि वह हास्य के कवि नहीं ओज के महारथी हैं लेकिन हास्य के साथ होली पर लोगों को ओज में •ाी आनंद आता है।
माधुरी शर्मा ने बताया कि होली पर नृत्य के कलाकारों को ज्यादा मौका मिलता है। वह एक माह पहले से बुक हो जाते हंै। मुझे लोक गायन के लिए जाना जाता है। अब ब्रज में होली पर लोक गायन को कम पसंद किया जाता है जबकि प्राचीन परंपरा होली के लोक गायन की ही रही। बाहर गायन को उतना ही महत्व मिलता है जितना नृत्य को मिलता है। ब्रज में लोगों को लोक गायन की ओर ध्यान देना चाहिए।कलाकार जगदीश ब्रजवासी ने बताया कि होली पर कार्यक्रमों की संख्या बढ़ जाती है। यह सचाई है कि कला के लिए समर्पित बहुतसे कलाकारों की रोजी रोटी का जुगाड़ त्योहार और उत्सवों के सीजन में ही होता है। वादक कलाकार प्रमोद शर्मा ने बताया कि वह एक भागवत कथा में बुक हैं। इसलिए होली के कार्यक्रमों की बुकिंग नहीं की। वह गायन एवं वादन दोनों करते हैं।
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