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सोमवार, 14 मार्च 2011

अच्छे लाभ के लिए करें औषधीय खेती

भारतीय परिप्रेक्ष्य में रोजगार सृजन में कृषि क्षेत्र की भूमिका सदैव सर्वोपरि रही है। संभवतया यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने कृषि कार्य को सबसे उत्तम व्यवसाय का दर्जा दिया था। वर्तमान में भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर तो हो गया है, लेकिन औषधीय एवं हर्बल उत्पादों की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में जितने भी जंगल रहे हैं, जहाँ ऐसी औषधियां प्राकृतिक तरीके से उपलब्ध रहतीं थीं ,जंगलों के कटान के कारण उनकी उपलब्धता समाप्त हो गयी। इस क्षेत्र में काम करने वाले ऐसे लोगों की भी कमी होने लगी, जिनको जड़ी-बूटियों एवं औषधीय पौधों की जानकारी तथा पहचान थी। परम्परागत तरीकों से ऐसी फसलों की खेती कभी की ही नहीं गयी, जबकि इनकी मांग दिन- प्रतिदिन अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती ही जा रही है। पिछले कई दशकों से हमारे देश के वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम कर व्यावसायिक स्तर पर खेती करने के लिए विभिन्न तकनीकियों एवं प्रजातियों की खोज की है। वैज्ञानिकों द्वारा इन फसलों के बीजों/पौधों की बुवाई, सिंचाई व निराई-गुड़ाई, खाद -उर्वरक, कीटनाशक, फसलचक्र, भूमि व मृदा की विस्तृत तकनीकी एवं जानकारी उपलब्ध कराने के साथ-साथ भंडारण एवं प्रसंस्करण ह्यआसवनह्ण संयंत्रों की भी पूरी जानकारी उपलब्ध करायी गयी, परंतु अभी तक जनसाधारण तथा किसानों को ऐसी फसलों की खेती के बारे में नाम मात्र की ही जानकारी है।
औषधीय एवं सगंध पौध आधारित खेती, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के अतिरिक्त ग्रामीण उद्योग के अंतर्गत रोजगार सृजन हेतु बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इनकी खेती के नए आयामों से रोजगार, आय तथा जीवन स्तर को उठाना सम्भव हो रहा है। इसके अंतर्गत जहां एक ओर प्रति माह लाभार्थियों को आय प्राप्त होगी, वहीं दूसरी ओर निरंतर आमदनी के स्नेत प्राप्त होते रहेंगे और प्रतिवर्ष आमदनी में भी बढ़ोत्तरी होती जायेगी। इसका मूल कारण यह है कि वर्तमान में इस क्षेत्र में आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक हो रही है, फलस्वरूप मार्केटिंग की उपयुक्त व्यवस्था उपलब्ध है।
औषधीय तथा सगंध कृषि की विशेषताएंे पारम्परिक कृषि फसलों की अपेक्षा औषधीय एवं सुगन्धित फसलों की खेती करने पर 2-3 गुना आमदनी होगी एवं दो गुना रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे । साल भर लगातार रोजगार के अवसर, क्योंकि विभिन्न फसलों की नर्सरी, रोपाई, सिंचाई व निराई-गुडाई, कटाई, फूलों एवं पत्तियों का तोड़ना व सुखाना एवं प्रसंस्करण पूरे वर्ष चलता रहता है। ग्रामीण अंचल में सभी वर्ग की महिलाओं, बच्चों व पूरे परिवार के लोगों के साथसा थ अन्य जरूरतमंदों को भी रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलते हैं। यह कार्य आसान भी है। योजना बनाते वक्त ऐसी औषधीय एवं सुगंधीय फसलों का चयन किया गया है जिनकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर गुणात्मक मांग है। वर्तमान में एलोपैथिक दवाओं के स्थान पर आयुर्वेदिक व हर्बल दवाओं पर विशेष बल दिया जा रहा है। रसायन आधारित साबुन, क्रीम, टूथपेस्ट, पावडर, तेल, हेयरडाई, वाशिंग पावडर, शैम्पू,परञ्जयूम आदि भी अब आयुर्वेदिक और हर्बल आधारित उत्पादों से बनाए जा रहे हैं। कल्पतरु एक्सप्रेस साभार
 

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