मथुरा। 12 वीं पंचवर्षीय योजना में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पशु संस्थान डिसआर्डर मैनेजमेंट पर अनुसंधान में एकजुटता दिखाएंगे। पशुओं से मानव में फैलने वाली बीमारियों की ओर विशेष ध्यान रहेगा। कम उत्पादकता वाले पशु और नए रूप में पुराने रोगों की दस्तक जैसी चुनौतियों का हमें पर्यावरणीय बदलाव को ध्यान में रखते हुए समाना करना है। बेहतर समाधान लोगों को मुहैया कराना विज्ञानियों की जिम्मेदारी है।
यह जानकारी परिषद के महानिदेशक पशुपालन डा केएमएल पाठक ने कल्पतरू एक्सप्रेस से विशेष भेंट के दौरान दी। केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम पर देश 18 पशु संस्थानों के निदेशक आए हुए हैं। यहां 12 वीं पंचवर्षीय योजना में पशुधन विकास के लिए जरूरी पहलुओं पर पहली बार मंथन शुरू हुआ है। डा पाठक ने बताया कि आज इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि पशुधन को कैसे लाभाकरी बनाया जाए। पशुपलकों को किस तरह से फायदा हो। मंथन में इसी लिए याक, मिथुन, सूअर, गाय, भेंस, भेड़, घोड़ा आदि पर काम कर रहे संस्थानों के निदेशक बुलाए हैं।
आज पहली मीटिंग है। इसके जरिए यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि किसानों के उपयोगी प्रोग्राम क्या हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती कम उत्पादकता वाले पशु हैं। दूसरा प्रजनन संबंधी समस्या पशु पालकों की कमर तोड़ देती है। इससे भी बढ़कर पर्यावरणी परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभाव हैं।
आज हम भेंस को मीट एनीमल व बकरी को फ्यूचर एनीमल बोल रहे हैं। इन सब से जुडे़ मुद्दों पर हम काम कर रहे हैं।
भेंस में 40 प्रतिशत कृतिम गर्भाधान सफल है। बकरी में इस दिशा में सार्थक प्रयासों की जरूरत है। बकरी का अच्छा जर्म प्लाज्म केन्द्रीय बकरी संस्थान के साथ गांव तक पहुंचे, तभी लोगांे को लाभ होगा।
रोग नियंत्रण की दिशा में हो रहे प्रयासों के विषय में उन्होंने कहा कि तीन जरूरी पहलू हैं। पहला किसान के पास उन्नत नस्ल के जानवर हांे। दूसरा अच्छा चारा दाना मिले। तीसरा बीमारियों का निदान व उपचार समय पर होगा तभी पशु पालन में विकास होगा।
कांेगो बायरस जैसी चुनौतियों के विषय में उन्होंने कहा कि यह इमरजिन डिजीज है। भोपाल में हमारी हाई सिक्योरिटी लैब है। इस तरह की बीमारियों से जन हानि होने से रोकने की दिशा में भी विस्तृत चिंतन होना है।
यह जानकारी परिषद के महानिदेशक पशुपालन डा केएमएल पाठक ने कल्पतरू एक्सप्रेस से विशेष भेंट के दौरान दी। केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदूम पर देश 18 पशु संस्थानों के निदेशक आए हुए हैं। यहां 12 वीं पंचवर्षीय योजना में पशुधन विकास के लिए जरूरी पहलुओं पर पहली बार मंथन शुरू हुआ है। डा पाठक ने बताया कि आज इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि पशुधन को कैसे लाभाकरी बनाया जाए। पशुपलकों को किस तरह से फायदा हो। मंथन में इसी लिए याक, मिथुन, सूअर, गाय, भेंस, भेड़, घोड़ा आदि पर काम कर रहे संस्थानों के निदेशक बुलाए हैं।
आज पहली मीटिंग है। इसके जरिए यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि किसानों के उपयोगी प्रोग्राम क्या हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती कम उत्पादकता वाले पशु हैं। दूसरा प्रजनन संबंधी समस्या पशु पालकों की कमर तोड़ देती है। इससे भी बढ़कर पर्यावरणी परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभाव हैं।
आज हम भेंस को मीट एनीमल व बकरी को फ्यूचर एनीमल बोल रहे हैं। इन सब से जुडे़ मुद्दों पर हम काम कर रहे हैं।
भेंस में 40 प्रतिशत कृतिम गर्भाधान सफल है। बकरी में इस दिशा में सार्थक प्रयासों की जरूरत है। बकरी का अच्छा जर्म प्लाज्म केन्द्रीय बकरी संस्थान के साथ गांव तक पहुंचे, तभी लोगांे को लाभ होगा।
रोग नियंत्रण की दिशा में हो रहे प्रयासों के विषय में उन्होंने कहा कि तीन जरूरी पहलू हैं। पहला किसान के पास उन्नत नस्ल के जानवर हांे। दूसरा अच्छा चारा दाना मिले। तीसरा बीमारियों का निदान व उपचार समय पर होगा तभी पशु पालन में विकास होगा।
कांेगो बायरस जैसी चुनौतियों के विषय में उन्होंने कहा कि यह इमरजिन डिजीज है। भोपाल में हमारी हाई सिक्योरिटी लैब है। इस तरह की बीमारियों से जन हानि होने से रोकने की दिशा में भी विस्तृत चिंतन होना है।
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