मथुरा। गधा, घोड़ा और खच्चर आज भी देश के दुर्गम इलाकों में माल वाहक का बेहतर श्रोत हैं। घोड़ों की कई अच्छी नस्लों को उन्नत पशु पालन करने वाले समृद्ध किसान व्यावासायिक रूप से पाल सकते हैं। राजस्थान के कई किसानों ने अश्व पालन को व्यवसाय बना रहे हैं। वह इनसे धन और शोहरत दोनों हासिल कर रहे हैं।
यह जानकारी राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार के निदेशक डा. राजकुमार ने विशेष भेंट में दी। उन्होंने बताया कि
घोड़ों में भी कुछ विशेष रोग समस्या का कारण रहे। इनकी नेदानिक वैक्सीन तैयार कर ली गई हैं। इक्वाएन इन्फ्लुइंजा 12 साल के बाद वर्ष 2008 में पुनः आया। 2007 में ग्लंेडरस नामक बीमारी आई। इसकी बजह से कई राज्यांे में नुकसान हो रहा है। यह बीमारी अन्य पश्ुाओं में भी जा सकती है। इससे मनुष्यों के शरीर पर छोटे घाव बन जाते हैं।
इक्वाइन इन्फलूएंजा का टीका हमने विकसित किया। इसे हर साल नए स्ट्रेेन के सहारे रिव्यू किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि घोड़ों में प्रजनन की समस्या आ रही है। इस दिशा में बीकानेर संेटर पर कृतिम गर्भाधान की तकनीक पर काम चल रहा है। यह खच्चरों पर बहुत कारगर हो रही है। मारवाड़ी घोड़ों में एआई बहुत सफल रही है।
उन्होंने कहा कि मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा दौड़ के लिहाज से बहुत अच्छा होता है। इन्हें अराबियन घोड़ों के समकक्ष माना जाता है। इसी लिए विदेशों में भी मारवाड़ी नस्ल की बहुत मांग है। कुछ किसान राजस्थान के हनुमानगढ़ आदि इलाकों में घोडे़ पाल रहे हैं। पिछले चार माह में चार एवार्ड उनके घोडे़ जीत चुके हैं। यह प्राफिटेबल बिजनिस बन सकता है। घोडे़ पालने को लेकर एक भ्रांति रही है वह बगैर चने के नहीं पलते लेकिन यह गलत है। घोड़े बगैर चने के भी रह सकते हैं।
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