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रविवार, 13 मार्च 2011

जंगे आजादी

 
ब्रज की आजादी के लिये हो गया बलिदान
राजस्थान के राजा कुलचंद यादव ने महमूद गजनवी से लड़ी थी महावन में जंग
मथुरा। ब्रज भूमि को यदुकुल शिरोमणि कहे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने भले ही असुर कंस के आतंक से मुक्त किया हो लेकिन मुगल काल में एक और योद्धा ने आजादी की ऐतिहासिक जंग लड़ी। जब वह हारने लगा तो मैदान में साथ दे रही अपनी पत्नी का सर धड़ से अलग कर दिया और उसी तलबार को अपने सीने में घोंप कर बलिदान हो गया।
बयाना राजस्थान के राजा कुलचंद यादव ने अपना साम्राज्य यहाँ तक फैला रखा था। महावन का इलाका सन् 1018 में उन्हीं के अधीन था। महमूद गजनवी जब राजस्थान के इलाकों को रोंदता हुआ मथुरा की ओर बढ़ रहा था तो कुलचंद ने राजस्थान से लेकर यहाँ तक अनेक जगह मार्चे बनाकर उसे रोकने का प्रयास किया। कुलचंद ने अपना आखिरी मोर्चा महावन में बनाया। स्थानीय लोगों और सेना के साथ उसने गजनवी के छक्के छुड़ा दिये। कुलचंद की इस जंग में उसकी पत्नी ने भी  कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी। काफी संघर्ष के बाद जब उसे लग गया कि उसकी सेना मारी जा चुकी है तो उसने कठोर फैसला लिया। महावन की भूमि पर उसने अपनी तलबार निकाली और सबसे पहले अपनी पत्नी का सर घड़ से अलग कर दिया। इसके बाद उसी तलबार को अपने सीने में घोंपकर प्रांण त्याग दिये। डा. रमेश चंद्र शर्मा स्मारक एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष डा. सुरेश चंद्र शर्मा ने बताया कि सन् 1018 की इस घटना को
वर्ष 2018 में एक हजार वर्ष हो जाएंगे। तरीखे यामिनी और ग्राउस के मेमॉयर में इस महान शासक की इस घटना का जिक्र मिलता है लेकिन इसके विषय में बहुत कम लोग जानते हैं। उन्होंने यह भी  कहा कि यदि इस शासक का राजस्थान के अन्य राजाओं ने जरा भी  साथ दिया होता तो मथुरा को बार बार न लूटा गया होता। इस जंग की गाथाएं शदियों तक लोक गायकों द्वारा गाई जाती रही होंगी, जिनसे आगमी समय में क्रांतिकारियों का जन्म इस भूमि पर होता रहा।

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