ब्रज में सैकड़ों सालों से परंपरागत रूप से खेली जाती है हर्बल रंगों से होली
मथुरा। ब्रज में होली हो और टेसू के फूल नहों ऐसा होही नहीं सकता। ब्रज में होली गेंदा, गुलाब, केवड़ा, मोगरा आदि सभी फूलों की होती है लकिन रंग केवल टेसू के फूलों का ही बनता है। जिस तरह गीत, संगीत और नृत्य होली की आन, बान, शान कहे जाते हैं। उसी तरह टेसू के फूलों के रंग यहाँ की होली को बहुरंगी छटा देते रहे हैं। मंदिरों के साथ साथ आम जनमानस को भी होली के लिए टेसू का केशरिया रंग बन्ने लगा है।
राधा-कृष्ण की प्रेम से पगी होली हो या फिर वेद और आयुर्वेद, सभी में ढ़ाक, पलाश एवं टेसू के पुष्पों की उपयोगिता सिद्ध होती है। इन फूलों की होली सैकड़ों वर्ष से ब्रज में खेली जाती है। अब बरसाना के पहाड़ों पर इसके वृक्ष बहुत कम बचे हैं लेकिन बलदेव स्थित दाऊजी महाराज मंदिर में हुरंगे के दौरान हजारों बालटी टेसू रंग बरसता है। बरसान, नंदगांव एवं वृन्दावन के मंदिरों में भी टेसू रंग का प्रयोग होता है लेकिन यहाँ होली में अब आसमान में उड़ते गुलाल की प्रधानता हो गई है। ब्रज के बरसाना क्षेत्र में टेसू वृक्ष को स्थानीय लोग धौ कहते हैं। यहाँ गोवर्धन पर्वत पर इसके पौधे हुआ करते थे। वर्तमान में हैं या नहीं इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को भी नहीं। आदि बद्री (कामा) व डीग राजस्थान के पहाड़ों पर आज भी हजारों की तादात में टेसू वृक्ष मौजूद हंै।
टेसू के हर्बल कलर की ओर अब आम जन का रुझान होने लगा है। कारण इसके औषधीय गुणों से भरपूर होना है। वेदों में जिक्र मिलता है कि टेसू के रंग में भीगे वस्त्र पहनने से कई रोग दूर होते हैं। उल्लेख मिलता है कि गुरुकुल से शिक्षा पाकर घर लौटने वाले विद्यार्थिंयों को प्राचीन काल में आचार्य टेसू दण्ड दिया करते थे। इसके पीछे सोच यही थी कि यह दण्ड उन्हें रोग संक्रमण से मुक्त रखेगा।
टेसू के फल, फूल, छाल व जड़ सभी का उपयोग दवा के रूप में होता है। रासायनिक रंगों के प्रयोग से होने वाली परेशानियों से लोग अब परेशान होने लगे हैं। इसी लिए उन्होंने इसबार टेसू के रंग से होली खेलने का मन बनाया है। एक किलोग्राम टेसू के फूलों से पाँच-छह बाल्टी रंग बन सकता है। कारोबारी विपिन ने बताया कि इस समय फूल 30 रुपए प्रतिलोग्राम की दर से बिक रहे हैं। हर बार कैमीकल युक्त रंगों के साथ टेसू फूलों की मांग बढ़ रही है]
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