बेबीकॉर्न की खेती बदल सकती है किसानों की किस्मत
कम पानी वाली फसल के साथ साल में तीन से चार बार कर सकते हैं इसकी खेती
मथुरा। खान-पान की आदतें बदलने के साथ ही नई फसलों की बाजार में माँग बढ़ने लगी है। इनकी कीमत किसानों को बहुत अच्छी मिल रही है। बेबीकॉर्न की खेती इसी तरह की फसलों में से एक है। इसकी खूबी यह है कि इसकी साल में चार फसल ली जा सकती हंै। दिल्ली और आगरा जैसे शहर इसके बाजार हैं। इसकी खेती तो कोई आम किसान ले सकता है लेकिन इसकी मार्केटिंग के लिए कुशलता बेहद जरूरी है।
मक्का अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डा. सांई कुमार ने बताया कि बेबीकॉर्न छिलका रहित अंगुलीनुमा आकार के मक्के का एक अनिषेचित भूट्टा है। इसे सलाद के रूप में पूरा खाया जाता है। फाइव स्टार होटलों में इसकी डिश तैयार होती हैं। इसकी की किसानों को सौ से 300 रुपए प्रति किलोग्राम तक कीमत मिलती है। इसकी खीर, चटनी, अचार, सब्जी, चाइनीज भो जन बहुत स्वादिष्ठ होते हैं।
कुछ मौसमी सब्जी या उनसे अधिक पौष्टिक तत्व इसमें होते हैं। प्रोटीन, विटामिन, लौह एवं फास्फोरस का यह उपयुक्त श्रोत है। सुपाच्य होने के साथ यह कीटनासियों के प्रभाव से मुक्त होता है।
इसकी खेती साल भर की जा सकती है। इसकी खेती में पानी की खपत कम होती है। इसके अलावा भूट्टे को छह से 11 सेण्टीमीटर का होने पर तोड़ लिया जाता है। इससे नीलगाय आदि जंगली जानवर इसे कम खाते हैं। भूट्टों के ऊपर के पत्तों को छीलना होता है जो हरे चारे के रूप में बहुत मीठे और पौष्टिक होते हैं। इसके निर्यात की बहुत संभावना है। मथुरा जिले में पूर्व के दो सीजनों में इसकी खेती अड़ींग निवासी भगवान दास यादव ने मक्का अनुसंधान निदेशालय पूसा संस्थान से नि:शुल्क बीज प्राप्त कर की। वर्तमान में डा. आरके गुप्ता के पालीखेड़ा स्थित मशरूम फार्म पर दो एकड़ में बेबीकॉर्न लहलहा रहा है। आगरा मण्डल में इसकी खेती बहुत कम किसान करते हैं। मथुरा में शुरूआत है।
बुवाई का समय और विधि
पष्चिमी उत्तर प्रदेश में इसकी बुवाई सालों भर की जा सकती है। ध्यान केवल यह रखना है कि ज्यादा गर्मी व ज्यादा ठंड के समय बुवाई न करें। इससे अंकुरण प्रभावित होने के साथ पौधे के विकास पर प्रभाव पड़ता है। बेबीकॉर्न की एक फसल अधिकतम 90 दिन की होती है। इसकी बुवाई आलू की तरह मेंढ़ों पर की जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेण्टीमीटर व मेंढ़ से मेंढ़ की दूरी 60 सेण्टीमीटर रखनी चाहिए।
इसकी शंकर किस्म एचएम- 4 बहुत मीठी किस्म है। बाजार में इसकी बेहद माँग है। उत्तर प्रदेश के लिए इसके अलावा सेंजेंटा कंपनी ने एक प्रजाति इजाद की है। इसके 22 से 25 किलोग्राम बीज को प्रति हैक्टेयर की दर से बोना चाहिए। बोने से पूर्व बीज को फफूंदी नाशी व कीटनाशी दवा से उचारित कर लें।
उर्वरक प्रबंधन
इसकी खेती के लिये जमीन उपजाऊ होनी चाहिए। यदि कमजोर जमीन हो तो उसमें 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 180 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से पोटाश डालनी चाहिए। 8 से 10 टम गोबर की खाद डालें। इनके अलावा जिंक •ाी 20 किलोग्राम की मात्रा में डालें। अंतिम जुताई के समय उर्वरक जोत में मिला दें। इस समय नाइट्रोजन की कु ल मात्रा का 10 प्रतिशत हिस्सा ही मिलाएं। बाकी बची नाइट्रोजन के 20 प्रतिशत अंश को चार पत्तियों की अवस्था पर, 30 प्रतिशत को आठ पत्तियों, 25 कोे छर्रा या मंजरी आने के बाद व 15 प्रतिशत नाइट्रोजन छर्रा तोड़ने के बाद डालना चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन
बाजरा एवं मक्का की फसल में खरपतवार प्रबंधन को एट्राजिन नामक दवा ही डाली जाती है। एक से डेढ़ किलोग्राम 500-600 लीटर पानी में घोलकर इसके छिड़काव से खरपतवार मर जाते हैं।
अंत: फसली खेती
बेबीकार्न को एकल फसल के रूप में करने से अच्छा अंत: फसली खेती करना रहता है। मेथी, मूली, आलू, मटर, पालक,, चुकन्दर, गाजर, टमाटर, ग्लैडियोलस आदि की खेती के साथ इसकी खेती करने से दूसरी फसल को कार्बन बहुत अच्छा मिलता है। कई फसलों को ज्यादा कार्बन की जरूरत होती है जिसकी पूर्ति बेबीकॉर्न कर देता है।
नर मंजरी को निकालना
बेबीकॉर्न की खेती में पौधे के तने पर करीब 60-70 दिन बाद नर मंजरी, बाली या छर्रा निकलता है। इसे आसनी से पौधे के तने को पकड़कर निकालना होता है। इसे नहीं निकालने से फसल खराब हो सकती है। इन छर्रों का प्रयोग पश्ुा चारे के रूप में बहुत उत्तम होता है। छर्रा निकालने से पौधे में एक से दो •ाुट्टे ज्यादा लगते हैं। औसतन एक पौधे पर चार से पाँच •ाुट्टे लगते हैं।
कितनी होती है उपज
राष्टÑीय मक्का अनुसंधान निदेशालय के प्रसार प्र•ाारी डा. वीरेन्द्र कु मार यादव ने बताया कि देश में करीब 50 हजार हैक्टेयर में किसान इसकी खेती कर रहे हैं। औसतन 55 से 114 कुंतल छिली हुई बेबीकॉर्न प्रति हैक्टेयर की उपज किसान को मिल जाती है। 150 से 400 कुंतल हरा चारा मिला जाता है।
तुड़ाई प्रबंधन
पौधे पर जैसे ही भूट्टा लगने लगते हैं उसमें सुनहरे बाल निकल आते हैं। जिस दिन बाल निकल आएं, अधिकतम उसके तीसरे दिन तक इसे तोड़ा जा सकता है। •ाुट्टे के पत्तों पर चाकू से लम्बा कट का निशान लगाकर पत्ते छील लिए जाते हैं और दूधिया शिशु मक्का निकाल ली जती है। इसे 200 ग्राम वाली पॉलिथिन में पैक करके मण्डी ले जाया जाता है। आगरा-मथुरा में कई कोल्ड संचालक इसकी केनिंग-पैकिं ग •ाी करते हैं लेकिन यह 60 रुपए किलोग्राम की दर से अधिक मूल्य नहीं दे पाते। इधर दिल्ली की आजाद पुर मण्डी, आईएनए मार्केट में यह 300 रूपए प्रति किलोग्राम तक बिक जाता है। इससे किसान को आसानी से 50 हजार रुपए एकड़ का मुनाफा हो जाता है। अन्य फसलों के मध्य में इसकी खेती से अगली फसल में खरपतवार कम आते हैं।
बदल गई अटेरना के किसानों की जिंदगी
हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले का यह गांव आज शिशु मक्का का मक्का मदीना बन गया है। यहाँ के किसान कंवल सिंह चौहान ने दिल्ली के 30 किलोमीटर निकटस्थ होने के कारण सबसे पहले बेबीकॉर्न की खेती के व्यवसायी करण के विषय में सोचा। सबसे पहले उन्होंने इसकी खेती की शुरुआत की। इसके बाद इसकी प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की। वह आज टोमेटो सॉस, स्वीटकॉर्न की पैकिंग, बेबीकॉर्न की डब्बा बंदी सब कुछ कर रहे हैं। उनके गांव के आस पास के ज्यादातर किसान साल •ार बेबीकॉर्न ही उगाते हैं। कई नए इलाके किसान जब इस खेती को व्यावायिक दृष्टि से अपनाते हैं तो इस गांव में •ाी जाते हैं। श्री चौहान ने इस प्रतिनिधि को बाताया कि उनके जीवन की दिशा ही बेबीकॉर्न ने बदल दी है।
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