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रविवार, 13 मार्च 2011

जलवायु के अनुरूप होगी इलाकों में खेती



प्रतिकूल मौसम से जूझने वाली किस्म निकाल रहे 55 विवि के 800 वैज्ञानिक' डा.एस अ‍ैयप्पन
आईटी सिस्टम से जोड़े जा रहे देश के केवीके, एक साथ होगी 200 की ब्रीफिंग
मथुरा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. एस. अ‍ैयप्पन ने कहा कि देश में अब जिलेवार और जरूरत के अनुरूप खेती होगी। इससे मंडियों में किसी एक फसल की भारमार नहीं होगी। सरकार को यह पता रहेगा कि देश की जरूरत के हिसाब से कौनसी फसल किस इलाके में प्रमोट की जाए। इसके अलावा 55 विश्व विद्यालयों में 800 वैज्ञानिकों को ग्लोवल वार्मिंग की समस्या के लड़ने वाली वैरायटी तैयार करने पर लगाया है। वह कम समय और तापमान की खराब स्थिति में अच्छे उत्पादन वाली किस्मों पर काम कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्य पर नजर रखने को उन्हें आईटी सिस्टम से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में विभीन्न जलवायु और मृदा स्थितियाँ मौजूद हैं। जमीन में मौजूद तत्वों के हिसाब से फसलें कराई जाएंगी। इससे कम लागत में किसानों को  ज्यादा उत्पादन मिल सकेगा।
उन्होंने कहा कि लेंड यूज प्लानिंग के क्रम में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। आने वाले कल में किसान यह जान पाएंगे कि अगले सीजन में कौनसी फसल बोएं ताकि पैसा अच्छा मिले।
किसानों के पास खेती के साथ पशु, मत्यस्य पालन जैसे कई विकल्प हैं। इन्हें खेती के साथ जोड़ने की जरूरत है। समग्र खेती से ही उन्हें लाभ  होगा। वैज्ञानिक बीज से बाजार तक की चेन तैयार कर रहे हैं।
इसके अलाव कृषि विज्ञान केन्द्रों पर हो रहे कार्य की सही जानकारी के लिए उन्हें आईटी सिस्टम से जोड़ा जा रहा है। इससे एक साथ देश के 200 केन्द्रों की ब्रीफिंग हो सकेगी।  पशुपालन के क्षेत्र में विकास के सवाल पर उन्होंने कहा कि देश में 500 मिलियन पशु हंै। 110 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन हो रहा है लेकिन खपत बढ़ी है। ब्रीड, फाडर मैनेजमेंट आदि पर काम तेज कर उत्पादन बढ़ाना उनकी प्राथमिकता है। 

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