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रविवार, 13 मार्च 2011

पहाड़ों में परिवहन के राजा को मिलेगा जीवनदान


खच्चर और घोड़ों की अच्छी नस्लों के बचाए रखने को वीर्य संकलन तकनीक सफल
दिलीप कुमार यादव

मथुरा। जंग के दौरान दुर्गम स्थानों पर रसद पहुँचाने वाले खच्चरों और घोड़ों की अब कमी नहीं होगी। वेटरिनरी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इनकी नस्लों के संरक्षण के लिये वीर्य संकलन की तकनीक इजाद कर ली है। इससे कृतिम गरभाधन  का काम शोधार्थी सेना के कर्नल कर रहे हैं।
जिन लोगों को पहाड़ी परिवहन के प्रमुख श्रोत खच्चरों की नस्ल सुधार का काम करना चाहिए था, उनका काम सेना के कर्नल देवेन्द्र ने किया है। उन्होंने सेना में इन पशुओं की मौजूदगी के चलते वेटरिनरी विवि में सीमन फ्रीजिंग पर शोर  किया। घोडे और खच्चरों के वीर्य के संकलन की तकनीक पर उन्होंने देश में पहली बार सार्थक परिणाम हासिल किए।
विवि के मादा पशुरोग विज्ञान विभाग के आचार्य एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा. अतुल कुमार सक्सेना ने बताया कि कर्नल ने उनके निर्देशन में कार्य किया। हम लोगों ने देश में पहलीबार इस काम में सफलता हासिल की। इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिये एक लैव की जरूरत थी। मेरठ क्षेत्र के बाबूगढ़ स्थित सेना की रिमाइण्ड वेटरिनरी कोर में कृतिम गर्भाधान के कार्य को आगे बढ़ाया गया। वह अब कर्नल का इस काम में सहयोग कर रहे हैं। डा. सक्सेना ने कहा कि कीमती घोड़ों को हीट के समय स्वस्थ नर नहीं मिल पाते। सीमन फ्रीजिंग तकनीक से हीट में आने वाले पशुओं के लिए सीमन मिल पाएगा। कृतिम गर्भाधान का रास्ता भी भविष्य में आसान होने की संभावना है।
क्यों जरूरी है सीमन संकलन
मथुरा। घोड़ों और खच्चरों में नरों की संख्या कम होती है। जिन पहाड़ी इलाकों में इनकी जरूरत ज्यादा होती है। वहाँ मादा को क्रास कराने के लिए समय पर नर नहीं मिल पाते। इससे इनकी वृद्धि अपेक्षित नहीं हो पाती। दूसरा उक्त पशु जनवरी से जून तक ज्यादा हीट में आते हैं। बाकी समय में बेकार पडे रहने वाले सीमन का संकलन कर अन्य समय में उपयोग संभव हो गया है।

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