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सोमवार, 14 मार्च 2011

आर्गेनिक फूड की खेती से भरेंगे भारत के भंडार


आधुनिक सेवाओं की तूती बोलने से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था को रञ्जतार कृषि क्षेत्र से ही मिल रही थी। अब लोग ताजे और आर्गेनिक उत्पादों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में कृषि एक कारोबार के तौर पर बड़ा मौका बनकर उभर रहा है। कारोबारी इसे मंदी से मुक्त और लगातार बढ़ने वाले कारोबार के तौर पर देख रहे हैं। वास्तव में सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। यही वजह है कि शहरों में आर्गेनिक फूड का चलन बढ़ा है। कॉन्सस फूड, डाउन टू अर्थ, एंजन फूड्स, मदर अर्थ और दूसरी स्पेशलाइज्ड कंपनियां शहरों में ग्राहकों तक आर्गेनिक फूड पहुंचा रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में आर्गेनिक फूड का संभावित बाजार 1500 करोड़ रुपये का है। यह सालाना 20 फीसदी की रञ्जतार से बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ 5 फीसदी किसान आर्गेनिक खेती की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि एनजीओ और सरकार की कोशिश के चलते ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है। दुनिया भर में कुल खाद्य पदाथोर्ं की बिीी में आर्गेनिक फूड की हिस्सेदारी दो फीसदी है। एंजेलफूड शुरू करने वाली रचाना तोशनीवाल ने कहा कि पांच साल पहले की तुलना में आर्गेनिक फूड बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं। फूड और एग्रीकल्चर आधारित फंड का प्रबंधन करने वाले राबो इक्विटी एडवाइजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर के अनुसार, खपत बढ़ रही है। ऐसे में कृषि उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। इससे एग्रीकल्चर वेंचर काफी आकर्षक हो गये हैं। यह सेक्टर मंदी से अछूता है क्योंकि इस सेक्टर में मांग हमेशा बरकरार रहती है। आईसीआईसीआई बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय कृषि और खाद्य कारोबार के अगले दशक में दोगुना होकर 280 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। साथ ही इस वक्त तक इस सेक्टर में 50 अरब डॉलर तक के निजी निवेश की संभावना भी पैदा हो गई है। एग्री कारोबार में मांग का जबरदस्त होना ही ऐसी वजह है जिससे कारोबारी ईको-फ्रेंडली क्लोजिदंग, एग्रीकल्चर पंप को कंट्रोल करने वाली मोबाइल डिवाइस जैसे कारोबारों में पैसा लगाने के लिए उत्साहित दिखाई दे रहे हैं।
विशेषज्ञ पर्यावरण पर लोगों के बढ़ रहे फोकस को एक मौके के तौर पर देखते हैं। केले के पेड़ या एलोविरा (ग्वारपाठा) से कपड़े तैयार करने जैसे अद्भुत कामों को भी एक कारोबार के तौर पर देखा जा रहा है। मामिलापल्ली एक स्थानीय व्यक्ति सी शेखर के साथ अनाना फिट कंपनी चला रहे हैं। इस फर्म को पूरी तरह से केले के पेड़ से बने धागे से एक चीनी कंपनी की ओर से आठ लाख टी-शर्ट बनाने और एक एनजीओ की ओर से एक लाख साड़ी बनाने का ठेका मिला है।
मोरारका ऑर्गेनिक्स के मार्केटिंग मैनेजर आनंद मैनी के मुताबिक
हमने कुछ प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स और रेडी टू कुक प्रोडक्ट्स भी बाजार में लांच किये हैं। हमने बाजार में रोस्टेड स्नैक्स, कुकीज जूस और सॉस अचार सहित कई दूसरे उत्पाद उतारे हैं। मोरारका आर्गेनिक्स मुंबई और दिल्ली में डाउन टू अर्थ आर्गेनिक स्टोर चलाती हैं। मोरारका आर्गेनिक्स का कारोबार सालाना 10 करोड़ रुपये का है। कंपनी ने देश भर के 90,000 किसानों के साथ गठजोड़ किया है जिसमें से कम से कम 60 फीसदी कंपनी द्वारा सर्टिफाइड हैं। अपने स्टोर के माध्यम से आर्गेनिक फूड बेचने के साथ ये ञ्जयूचर ग्रुप की सब्सिडियरी फूड बाजार, हाइपर सिटी, 24 लेटर्ड मंत्र और कई पांच सितारा होटलों को भी प्रोडक्ट बेचती है।
चेन्नई की एक कंपनी को फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देश से भी ऑर्डर मिले हैं। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए कार्बनीेडिट को बढ़ाने के लिए इन देशों की फमेर्ं अनाना फिट जैसी कंपनियों को आर्डर देते हैं। भारत दुनिया में केले का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले मुल्कों में शामिल है। ऐसे में कंपनी केले के बचे हुए कूड़े का इस्तेमाल कपड़े बनाने के लिए करती है। इसमें फाइबर को सुई की मदद से निकाला जाता है और इसे धागे में बदलने के लिए हम पूरी तरह से जैविक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। एक फार्म हाउस में रहने और खेती को एक कारोबार के तौर पर करने के कांसेप्ट को ऊंटी की लॉरसडेल एस्टेट एंड फार्म्स ने इसे जबरदस्त मॉडल के तौर पर पेश किया है। इस मॉडल में कम्युनिटी आधारित आर्गेनाइज्ड फामिर्ंग सिस्टम, ज़मीन खरीदना और फार्म हाउस शामिल हैं। इसमें आर्गेनिक फामिर्ंग, रिसर्च ऊर्मिए, एग्रोप्रोसेसिंग, मार्केटिक और फार्म टूरिज्म सभी हैं। फामिर्ंग कंपनी नीलगिरी पहाड़ों पर है और यह फल और आलू, गाजर, मशरूम, स्ट्राबेरी जैसी सब्जियों को ऊंटी फ्रेश के नाम से बेचती है।
निफार्म्स का कारोबारी मॉडल एकदम अलग है। यह गांवों में रहने वाले लोगों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने का काम करती है। विनफार्म्स के संस्थापक संरक्षक स्टीफन पुन्न के मुताबिक आधुनिक संचार साधनों का इस्तेमाल कर हमने किसानों को लाभकारी खेती करने के लिए उत्साहित किया। इलेक्ट्रानिक ऑर्डरिंग सिस्टम के आर्डर लेने और क्वालिटी मैनेजमेंट प्रोसेस पर कड़ी निगरानी करते हुए कंपनी खाद्य सुरक्षा स्टैंडर्ड को बरकरार रखती है। अपनी निजी बचत को फंडिंग के तौर पर इस्तेमाल करने वाली इस कंपनी में 100 कर्मचारी हैं। कंपनी को उम्मीद है कि अगले साल तक वह पांच करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल कर लेगी। अब आधुनिक किसानों ने अपना एक डिवाइस
शुरु किया है। इसके जरिये घर पर बैठे हुए ही किसान मोटर पंप को कंट्रोल कर सकते हैं। अपने खेत की सिंचाई कर सकते हैं। इसका मतलब है कि बिजली सप्लाई में किसी तरह की दिक्कत आने पर किसान को भागकर अपने खेत में नहीं जाना पड़ेगा। इस उपकरण के जरिये किसान को सेलफोन के जरिये जरूरी निर्देश भी मिल जाते हैं। यह डिवाइस पानी का दुरुपयोग भी रोकती है और मशीनरी को चोरी होने से भी बचाती है।
स्टार्ट अप सेरिकेयर नामक कंपनी आर्टिफिशियल डाइट और सिल्कवर्म की सही ग्रोथ के लिए रेगुलेटर जैसे उत्पादों का विकास करती है। इसने सेरिकल्चरीाप केयर उत्पाद भी विकसित किये हैं जो सिल्कवर्म को बचाते हैं। साथ ही इसके प्रमुख खाने की चीज शहतूत की पत्तियों को भी बचाते हैं।
इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। सेरिकेयर 250 किसानों के साथ काम करती है। यह अपने उत्पादों को सीधे किसानों को बेचती है। स्टार्ट अप एग्रोकॉम का मिशन लाखों किसानों को टेली एडवाइजरी सेवा देना है। इसके लिए इंटरनेट और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का सहारा लिया जा रहा है ताकि किसानों को खेती से जुड़ी सही और सटीक जानकारी दी जा सके। मिसाल के तौर पर एग्रोकॉम एक फार्मर नॉलेज एक्सचेंज प्लेटफार्म चला रही है जो कि किसानों से हर घंटे सवाल लेता है। यह देश के 420 जिलों में लागू है। साथ ही कुछ दूसरे देशों में भी इसकी सेवा दी जा रही है।
.विनय राणा

 दलहनी फसलें बढ़ाएंगी उर्वरा शक्ति
किसान पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहा था अब उसकी एक और बड़ी समस्या खेत की उर्वरा शक्ति कम होना बनती जा रही है। साठ के दशक में आई हरितीांति के चलते पैदावार में दोगुनी वृद्धि तो हुई किंतु बढ़ती जनसंख्या दर के हिसाब से यह कम ही रह गई है। इस पैदावार को बढ़ाने के लिए किसान ने खाद, उर्वरक और अन्य रसायनिक दवाओं का जमकर उपयोग किया। रसायनों के इस अंधाधुंध प्रयोग के चलते खेतों की उर्वरा शक्ति कम होती चली जा रही है।
आज हालात यह हैं कि उर्वरा शक्ति अति क्षीण हो चली है। इस शक्ति को दोबारा बढ़ा पाना आसान काम नहीं है।
किसान के सामने यह एक विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किसान लंबे अर्से से पशुओं के मलमूत्र डालता आ रहा है। इससे फायदा तो पहुंचता है, लेकिन इसकी उपलब्धता पर्याप्त न होने के कारण खेत की पैदावार घटती ही चली जा रही है। पशुओं के मलमूत्र से बने देसी खाद का उपयोग धीरे-धीरे घटता चला गया। इसके बाद हरा खाद, कंपोस्ट खाद का उपयोग किया गया जिससे पैदावार तो बढ़ी किंतु किसान की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाई।
खेतों में पैदावार बढ़ाने के लिए किसान ने उर्वरक डालने शुरू किए। एकल उर्वरक एवं मिश्रित उर्वरकों की भारी मांग बढ़ी। इनसे पैदावार तो बढ़ी किंतु रोगों को भी निमंत्रण दे दिया। किसान की ललक बढ़ती ही चली गई और उसने खेतों का दोहन शुरू कर दिया। अधिक पैदावार के चक्कर में खाद एवं उर्वरक का अंधाधुंध प्रयोग करने लगा। इस प्रकार लगातार पैदावार देते हुए भूमि की शक्ति कमजोर हो गई। उत्तरी हरियाणा के कई जिलों में सेम की समस्या भी घर कर रही है। एक ओर लवणों की मात्रा का बढऩा तो दूसरी ओर वर्षा के जल का अभाव किसानों के लिए चिंता का विषय बन गया है। किसान अब फसल पैदावार में तो विभिन्नता ला रहा है किंतु दलहन जाति की फसलों को भुला दिया है। जब तक खेतों में दलहन जाति की फसलें नहीं उगाई जाएंगी तब तक उर्वरा शक्ति को बढ़ाने व बनाए रखने का काम पूरा नहीं हो पाएगा। पेट भरने के लिए फसल पैदावार को तो बढ़ाना ही पड़ेगा किंतु यह एक सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता है, तत्पश्चात तो पैदावार को बढ़ा पाना आसान कार्य नहीं है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पैदावार को एक निश्चित सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता है। अब यह किसान पर निर्भर करता है कि खेत की उर्वरा शक्ति कैसे बढ़ाता है?
ऐसे बढ़ा सकते हैं पैदावार
.. खेतों में दलहन जाति के पौधे उगाकर।
.. खेतों में फसल चीण विधि का उपयोग करके।
.. खेतों में देसी खाद डालकर एवं उर्वरकों को कम प्रयोग करके।
.. खेतों की लवणता दूर करके।
.. समय-समय पर ढेंचा जैसी फसल उगाकर।दलहनी फसलें बढ़ाएंगी उर्वरा शक्ति .होशियार सिंह दलहनी फसलें बढ़ाएंगी उर्वरा शक्ति

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