मथुरा। जंगे आजादी की दास्तान निराली है। 1857 में अगे्रजों की हुकूमत को अलीगढ़ तक जाकर ललकारने वालों में नौहझील के लोगों का प्रमुख योगदान है। नौहझील के किले पर आक्रमण और तहसीलदार को मारने का प्रयास राष्टभक्तों ने किया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को काफी समय तक भगाए रखा।
चार जूर सन सत्तावन को बाजना के जमीदार उमराव बहादुर और खूबा के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अलीगढ़ कूच करने से पहले नौहझील किले पर हमला बोला। खूबा ने तहसीलदार को मारने का प्रयास कि लेकिन उसे पकड़ लिया गया। बाद में जेल में प्रताणनाओं के चलते उसकी मौत हो गई।
किले पर आक्रमण करने वालों में नौहवारी के जाट, मुरसान और पारासौली के लोग प्रमुख थे। आक्रमण में विदेशी शासन भक्त गौस मुहम्मद को क्रतिकारियों ने मार दिया। बाकी कर्मचारी भाग गये जिन्हें देश द्रोही जमीदारों ने शरण दी।
नौहवारी के भाव सिंह इस इलाके के प्रमुख क्रांतिकारी थे। उन्होंने गहलऊ और मुरसान तक क्रांति की अलख जगाई। नौहझील के हमजापुर गांव निवासी रामधीर सिंह एवं हरदेव सिंह ने पांच हजार योद्धाओं को साथ लेकर अलीगढ़ पर धावा बोल दिया। अंग्रेजों को जैसे ही यह जानकारी मिली, वह बीबी बच्चों के साथ सुरक्षित स्थानों की ओर कूच कर गए। क्र ांतिकारियों को जोभी गोरा मिला मौत के घाट उतार दिया गया। इस उत्साह का परिणाम ही था कि अंग्रेज सिपाही दुम दबाकर भाग गये। हम इतने एहसान फरामोस हैं कि इन रणवांकुरों की एक याद भी सहेज कर नहीं रख पाएंगे।
महाराज सूरजमल की समाधि में दफन है दांत
मथुरा। भरतपुर नरेश सूरजमल की स्मृति में गोवर्धन में बना कुसुम सरोवर उस दौर की अद्भुत निशानी है लेकिन इसमें समाधि के लिए महाराज का शरीर नहीं मिला। वह पानीपत युद्ध के बाद 1671 में गायब हुए। इस कीमती इमारत में उनके गायब होने से पूर्व टूटे दांता को ही उनका अंतिम पुष्प मानकर समाधि दी गई। माना जाता है कि इनकी मृत्यु दिल्ली शहादरा में हुई। वह काहां गए इसका पता नहीं चला है। इतिहासकार अपने तथ्यों से उनके गायब होने के पीछे उनकी हत्या किया जाना भी मानते हैं।
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