देश की आजादी के कई साल बाद मिली आजादी फिर भी बने हैं गुलाम
सदैव लुटते रहे क्रिमनल कहे जाने वाले भातू
इतिहास के आईने में बहुत मार्मिक है इनकी कहानी
दिलीप कुमार यादव/ मथुरा
भारत 1947 में आजाद हो गया, लेकिन कुछ भारत वासी गुलाम ही रहे। उन्हें आजादी 1952 में ही मिली लेकिन इस आजादी के भी इनके लिये कोई माइने नहीं। वह आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हैं। दकियानूसी कानून, शराब और शरीर बेचने तक को मजबूर इन जातियों को अधिकार और विकासवादी आयोग भी सम्मान और काम नहीं दिला पाये हैं। यह हमारे विकसित होने के तमगे पर तमाचा है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत की नवजीवन योजना एक मात्र उदाहरण है जिसने इन लोगों के उत्थान का रास्ता बनाया है। भातू, बेरिया, सांसी, कंजड़, करबल। इस जाति को जितने नाम दिये जाएं कम हैं। आजादी से पहले और अभी तक किसी पेचीदा मामले पर पर्दा डालना होता है तो यह जाति काम आती है। समाज और समाजवादी विचार धारा वाले चिंतकों के लिये इनका उत्थान चुनौती है। यह खुद तो बर्वाद हैं ही समाज में अवैध शराब का कारोबार कर हजारों लोगों को मौत के आगोश में धकेल रहे हैं।
काफी लोग आज भी पुलिस ने हिस्ट्रीशीटर बना रखे हैं। क्रिमिनल के ठप्पे के कारण इन्हें कोई काम भी नहीं देना चाहता। नई पीढ़ी के युवा अनेक बाधाओं के बाद भी नये रास्ते तय कर रहे हैं। इन्हीं की बिरादरी के महाठग अशोक जडेजा ने परिस्थतयों से जूझ रहे इन्हीं लोगों को ठगा।
आप यह जानकार चौंक उठेंगे कि इस जाति के साथ ज्यादती आजादी के बाद भी हुई है।
देशभर में जिस समय आजादी का जश्न मनाया जा रहा था उस समय भी इस जाति के लोग अग्रजों की हवालात जिन्हें सैटिलमेंट के नाम से जाना जाता था, में बंद थे। इन्हें 31 अगस्त 1952 को आजादी मिली। इस दिन को यह लोग मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं।
इतिहास के आईने में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक एचटी हालेंस ने अपनी पुस्तक द क्रिमनल ट्रायब्स यूनाइटेड प्रोविंस 1914 एवं एम. केनेडी ने अपनी पुस्तक द क्रिमिनल क्लाशेज इन इंडिया 1909 में भी जाति के विषय में विस्तृत रूप से लिखा है। सन 1873 में अंग्रेजों ने इस जाति को द क्रिमनल ट्रायब्स में रख दिया। इन्हें सेटिलमेंटों (जेल नुमा कमरे) में रखने की व्यवस्था 1871 में की गई। पहला सेटिलमेंट उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में बनाया गया। जिसे किला नाम दिया गया। इनमें 18 फिट ऊंची दीवार और एक ही गेट की व्यवस्था की गई। पुलिस रात में इन लोगों को कैदियों तरह गिनती कर बंद रखती। शादी विवाह में जाने की परमीशन लेनी पड़ती थी। इलाहाबाद के फूलपुर में डौमिन गढ़, लखीमपुर खीरी में साहब गंज, मुरादाबाद में कांट आशापुर में सेटिलमेंट बना कर इस जाति को रात्रि में बंद किया जाने लगा। इसी तरह की व्यवस्था मथुरा के अड़ींग में ब्रिटिश पीरियड में थाने में की गई। आज भी देश में इस जाति के लोग जहां पहले से रहते आये हैं वह ठिकाने पुलिस थानों के पीछे हैं।
1911 में कानून संशोधित कर नटीफिकेशन जारी किया। बेरिया, भातू, कंजड़, करबल, सांसी जाति को 23 जून 1913 से चौबीसों घंटे के लिये सैटिलमेंटों में ही बंद कर दिया। इनसे रस्सी, निवाड़ आदि के काम कराकर खाना दिया जाता था। अंग्रेजों के अत्याचारों से दुखी होकर नजीवबाद किले से मेघसिंग भागा जो बाद में डाकू सुल्ताना के नाम से जाना गया। इसने क्रांतिकारी बिगुल बजाया। जिमकार्बेट अंग्रेज राइटर ने पुस्तक माई इण्डिया में इसे इण्डिया का राबिन हुड कह कर संबोधित किया।
15 अगस्त 1947 में देश आजाद हो गया लेकिन इस जाति को आजाद करने से पहले भारत सरकार आइगर कमेटी का गठन किया। 31 अगस्त 1952 में कमेटी की रिपोर्ट के बाद सेटिलमेंटों से इस जाति के लोग आजाद किये गये। इन्हें आजादी के पांच साल एवं गणतंत्र के दो साल बाद सेटिलमेंटों से आजाद किया जा सका। सबसे पहले मुरादाबाद के कांट आशापुर किले के सैटिलमेंट का ताला प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री हरगोविन्द ने खोला। इसी दिवस को आज भी यह जाति मुक्ति दिवस के रूप में मनाती है। इन झंझावतों से यह जाति आज तक जूझ रही है।
अंधेरी कोठरियों में पीढ़ियां खपाने वाली इन जातियों के लिए राजस्थान सरकार की नवजीवन योजना वरदान बन रही है। भरतपुर जिले की तीन पंचायत समितियों कुम्हेर, डीग एवं नगर में नवजीवन योजना का क्रियान्वयन का जिम्मा लुपिन लिमिटेड औद्योगिक घराने की संस्था लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन को दिया गया है। इसने सर्वेक्षण में पाया कि इस गैर कानूनी तरीके से कच्ची शराब बनाने के व्यवसाय करने वाले परिवारों की संख्या 90 है? इनमें से संस्था ने 40 युवाओं को नौंकरी के लिए तैयार किया। इन्हें जॉब जंक्शन के सहयोग से एक माह का सिक्योरिटी गार्ड का आवासीय प्रशिक्षण दिलाया। संस्था चैकमैट ने इन्हें बड़ोदरा एवं अहमदाबाद में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दी है।
राजस्थान सरकार की यह पहल अन्य राज्यों के पिछड़े आदिवासी आदि के लिये वरदान बन सकती है। अपराधी के ठप्पे वाली जातियों को गुलामी की जंजीरों को काटने वाली हो सकती है।
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