मिट्टी जांच का महत्व एवं तकनीक
मिट्टी के रासायनिक परीक्षण के लिए पहली आवश्यक बात है कि खेतों से मिट्टी के सही नमूने लिए जाएं। न केवल अलग-अलग खेतों की मृदा आपस में भिन्नत हो सकती है, बल्कि एक ही खेत में अलग-अलग स्थानों की मृदा में भी भिन्नता हो सकती है। इसलिए परीक्षण के लिये खेत की मृदा का सही नमूला लेना चाहिए।
यदि मृदा का नमूना सही नहीं होगा तो उसके परिणाम भी मृदा की सही स्थिति नहीं बता सकेंगे।
खेत की उर्वरा शक्ति की जानकारी के लिये ध्यान योग्य बात है कि परीक्षण के लिये मिट्टी का जो नमूना लिया गया है, वह आपके खेत के हर हिस्से का प्रतिनिधित्व करता हो। नमूना लेने के उद्देश्य रासायनिक परीक्षण के लिए मिट्टी के नमूने एकत्रित करने के मुख्य तीन उद्देश्य हैं.. * फसलों में रासायनिक खादों के प्रयोग की सही मात्रा निर्धारित करने के लिए।
* ऊसर तथा अम्लिक भूमि के सुधार तथा उसे उपजाऊ बनाने का सही ढंग जानने के लिए।
* बाग व पेड़ लगाने हेतु भूमि की अनुकूलता तय करने के लिए।
समान भूमि की निशानदेही जो भाग देखने में मृदा की किस्म तथा फसलों के आधार पर जल निकास व फसलों की उपज के दृष्टिकोण से भिन्न हों, उस प्रत्येक भाग की निशानदेही लगायें तथा प्रत्येक भाग को खेत मानें।
नमूना एकत्रित करने की विधि मृदा का सफल नमूना लेने के लिये मृदा परीक्षण ट्यूब, बर्मा फावड़ा तथा खुरपे का प्रयोग किया जा सकता है। सबसे पहले मृदा के ऊपर की घास-फूस साफ करें। भूमि की सतह से हल की गहराई (15 सेमी) तक मृदा हेतु टयूब या बर्मा द्वारा मृदा की एकसार टुकड़ी लें। यदि आपको फावड़े या खुरपे का प्रयोग करना हो तो 15 सेमी गहरा गड्ढा बनायें। अब एक ओर से ऊपर से नीचे तक 10-12 अलग- अलग स्थानों से मृदा की टुकड़ियां लें और उन सबको एक भगोने या साफ कपड़े में इकट्ठा करें।
अगर खड़ी फसल से नमूना लेना हो, तो मृदा का नमूना पौधों की कतारों के बीच खाली जगह से लें।
जब खेत में क्यारियां बना दी गई हों या कतारों में खाद डाल दी गई हो तो मृदा का नमूना लेने के लिये विशेष सावधानी रखें। सावधानी- रासायनिक खाद की पट्टी बाली जगह से नमूना न लें। जिन स्थानों पर पुरानी बाड़, सड़क हो और यहां गोबर खाद का पहले ढेर लगाया गया हो या गोबर खाद डाली गई हो, वहां से मृदा का नमूना न लें। ऐसे भाग से भी नमूना न लें, जो बाकी खेत से भिन्न हो। अगर ऐसा नमूना लेना हो, तो इसका नमूना अलग रखें।
मिट्टी को मिलाना और नमूना बनाना एक खेत में भिन्न-भिन्न स्थानों से तसले या कपड़े में इकट्ठे किये हुए नमूने को छाया में रखकर सुखा लें। एक खेत से एकत्रित की हुई मृदा को अच्छी तरह मिलाकर एक नमूना बनायें तथा उसमें से लगभग आधा किलो मृदा का नमूना लें जो समूचे खेत का प्रतिनिधित्व करता हो। लेबल लगाना हर नमूने के साथ नाम, पता और खेत के नम्बर का लेबल लगायें। अपने रिकार्ड के लिये भी उसकी एक नकल रख लें। दो लेबल तैयार करें, एक थैली के अन्दर डालने के लिये और दूसरा बाहर लगाने के लिये। लेबल कभी भी स्याही से न लिखें। हमेशा बाल पेन या कॉपिंग पेंसिल से लिखें। सूचना पर्चा खेत व खेत की फसलों का पूरा ब्योरा सूचना पर्चा में लिखें। यह सूचना आपकी मृदा की रिपोर्ट व सिफारिश को अधिक लाभकारी बनाने में सहायक होगी। सूचना पर्चा कृषि विभाग के अधिकारी से प्राप्त किया जा सकता है। हर नमूने को एक साफ कपड़े की थैली में डालें। ऐसी थैलियों में नमूने न डालें जो पहले खाद आदि के लिए प्रयोग में लायी जा चुकी हों या किसी और कारण खराब हों जैसे ऊपर बताया जा चुका है। एक लेबल थैली के अन्दर भी डालें। थैली अच्छी तरह से बन्द करके उसके बाहर भी एक लेबल लगा दें। पोटाश की कमी के लक्षण पत्तियों का नीचे की ओर लटक जाना। नीचे के पत्तों का मध्य भाग ऊपर से नीचे की ओर धीरे- धीरे पीला पड़ना। पत्तियों का किनारा पीला होकर सूख जाना और धीरे-धीरे बीच की ओर बढ़ना। कभी - कभी गाढ़े हरे रंग के बीच भूरे धब्बे का बनना। पत्तों का आकार छोटा होना।
बड़ी समस्या है पशुओं में बांझपन
भारत में डेयरी फार्मिग और डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन जिम्मेदार है। बांझ पशु को पालना एक आर्थिक बोझ होता है और ज्यादातर देशों में ऐसे जानवरों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है। पशुओं में दूध देने के 10-30 प्रतिशत मामले बांझपन और प्रजनन विकारों से प्रभावित हो सकते हैं। अच्छा प्रजनन या बच्चे प्राप्त होने की उच्च दर हासिल करने के लिए नर और मादा दोनों पशुओं को अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जाना चाहिए और रोगों से मुक्त रखा जाना चाहिए। बांझपन के कई कारण हो सकते हैं और वे जटिल भी हो सकते हैं। बांझपन या गर्भधारण कर बच्चे को जन्म देने में विफलता मादा में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, प्रबंधन त्रुटियों और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकती है। यौन चक्र पहचानें गायों और भैंसों दोनों का यौन चक्र 18-21 दिन में एक बार 18-24 घंटे के लिए होता है, लेकिन कुछ पशुओं में चक्र गुपचुप तरीके से होता है जो एक बड़ी समस्या है। इसके लिए पशुपालकों को प्रति दिन 4-5 बार जानवरों की सघन निगरानी करनी चाहिए। उत्तेजना का गलत अनुमान बांझपन के स्तर में वृद्धि कर सकता है। उत्तेजित पशुओं में दृश्य लक्षणों का अनुमान लगाना काफी कौशलपूर्ण बात है। जो किसान अच्छा रिकॉर्ड बनाए रखते हैं और जानवरों की अच्छी देख-रेख रखते हैं वे बेहतर परिणाम प्राप्त करते हैं।
सावधानियां .ब्रीडिंग कामोत्तेजना के समय की जानी चाहिए।
. जो पशु कामोत्तेजना नहीं दिखाते हैं या जिन्हें चक्र नहीं आ रहा हो, उनकी जांच कर इलाज किया जाना चाहिए।
. छ: महीने में एक बार पशु चिकित्सक की सलाह से पेट के कीड़ों का उपचार कराना चाहिए।
. पशुओं को ऊर्जा के साथ प्रोटीन, खनिज और विटामिन्स की आपूर्ति करने वाला अच्छा संतुलित आहार दिया जाना चाहिए। यह गर्भाधान की दर में वृद्धि करता है, स्वस्थ गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करता है।
. गर्भावस्था के दौरान हरे चारे की पर्याप्त मात्रा देने से नवजात बछड़ों को अंधेपन से बचाया जा सकता है और (जन्म के बाद) नाल को बरकरार रखा जा सकता है।
. स्वास्थ्यकर परिस्थितियों में गायों की सेवा करने और बछड़े पैदा करने से गर्भाशय के संक्रमण से बड़े पैमाने पर बचा जा सकता है।
. गभार्धान के 60-90 दिनों के बाद गर्भावस्था की पुष्टि के लिए योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा जानवरों की जांच कराई जानी चाहिए।
. गर्भवती पशु को बेहतर खिलाई-पिलाई प्रबंधन और प्रसव देखभाल के लिए सामान्य झुंड से दूर रखना चाहिए।
. गर्भवती जानवरों का प्रसव से दो महीने पहले पूरी तरह से दूध निकालना बंद कर देना चाहिए और उन्हें पर्याप्त पोषण और व्यायाम दिया जाना चाहिए। इससे माँ के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिलती है, औसत वजन के साथ एक स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है, रोगों में कमी होती है और यौन चक्र की शीघ्र वापसी होती है।
बेल वाली सब्जियों की अगेती खेती
कद्दू कुल की सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिण्डा, करेला आदि बेलवाली सब्जियां कहलाती हैं। इनकी खेती मैदानी भागो में गर्मी के मौसम में मार्च से लेकर जून तक की जाती है। अच्छी आमदनी की दृष्टि से इन सब्जियों की अगेती खेती अच्छी रहती है, जाड़े के मौसम में इन सब्जियों की नर्सी पॉलीहाउस में तैयार की जा सकती है। पालीहाउस में तैयार इस पौध की जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाए इसका खेत में रोपण किया जाता है। पॉलीहाउस में इन सब्जियों की पौध तैयार करने के अनेक लाभ हैं.. . ऐसा करके एक से डेढ़ माह अगेती फसल ली जा सकती है।
. पालीहाउस में वर्षा, ओला, कम या अधिक तापमान, कीट व रोगों से पौध की सुरक्षा आसानी से कर सकते हैं।
. पौधों के लिए आवश्यक वातावरण प्रदान कर समय से पौध तैयार की जा सकती है।
. बीज दर कम लगती है जिससे उत्पादन लागत कम होती है।
उन्नत किस्में विभिन्न बेल वाली सब्जियों की उन्नत एवं संकर किस्में.. खीरा- जापानीज लोंग ग्रीन, स्ट्रेट एट, पोइन सेट, पूसा उदय, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण शीतल, स्वर्ण पूरणा पूसा संयोग, पंत संकर खीरा-1 लौकी- काशी गंगा, नरेन्द्र रश्मि, नरेन्द्र ज्योति, पूसा नवीन पूसा संदेश, पंजाब कोमल पूसा मेघदुत, पूसा मंजरी,पूसा हाइब्रिड-3 पेठा- काशी धवल, काशी उज्जवल, पूसा उज्जवल करेला- काशी उर्वसी, पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, कल्याणपुर बारामासी, अर्का हरित, अर्का सुमित, अर्का सुजात, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2 आरा तोरई- पूसा नसदार, पुसा सदाबहार, सतपुतिया, स्वर्ण मंजरी, स्वर्ण उपहार घिया तोरई- आई.वी.एस जी.-1, पूसा चिकनी, पूसा सुप्रिया, पूसा स्नेहा खरबूजा- काशी मधु, दुगार्पुरा मधु, हिसार मधुर, पंजाब सुनहरी, हरा मधु, पूसा सरबती, पूसा मधुरस, अर्का जीत, अर्का राजहंस पंजाब हाइब्रिड, पूसा रसराज तरबूज- सुगर बेबी, दुगार्पुरा मीठा, दुगार्पुरा लाल, दुगार्पुरा केसर अर्का ज्योति, मधु मिलन पौध तैयार करने की विधि जाडे के मौसम में अर्थात दिसम्बर और जनवरी के महीने में इन सब्जियों की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों को पालीथीन की थैलियों में बोया जाता है। पालीथीन की छोटी-छोटी थैलियां जिनकी मोटाई 200-300 गेज हो का चयन करते है। इन थैलियों में मिट्टी, खाद व बालू रेत का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में बनाकर भर लिया जाता है। मिश्रण भरने से पहले प्रत्येक थैली की तली में 2-3 छेद पानी के निकास के लिए बना लेते है।
थैलियों को भरने के बाद एक हल्की सिंचाई कर देते है। बेलवाली सब्जियों के बीजों की थैलियों में बुआई करने से पूर्व इनका अंकुरण कराना आवश्यक है क्योंकि जनवरी-फरवरी में ठण्ड के कारण जमाव बहुत देर से होता है। बुआई करने से पहले बीजों को केप्टान 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए। अंकुरण कराने के लिए सर्वप्रथम बीजों को पानी में भिगोते है तत्पश्चात उन्हें एक सूती कपड़े या बोरे के टुकड़े में लपेट कर किसी गर्म स्थान पर रखते है जैसे बिना सड़ी हुई गोबर की खाद या भूसा या अलाव बुझ जाने के बाद गर्म राख में। बीजो को जमाव के लिए भिगोने की अवधि 3-4 घन्टे (खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, कुम्हड़ा), 6-8 घन्टे (लौकी, तोरई, पेठा), 10-12 घन्टे (टिण्डा, चिचिण्डा), तथा 48 घन्टे (करेला) है। बीजों की बुआई जनवरी के माह में या फरवरी प्रारंभ में ही कर देनी चाहिए।
बुआई के 3-4 दिन बाद बीजों में अंकुरण हो जाता है। इन अंकुरित बीजों का पहले से भरी हुई प्रत्येक थैली में 2-3 बीजों की बुआई कर देते है। पौधे बड़े होने पर प्रत्येक थैली में एक या दो पौधा छोड़कर अन्य को निकाल देते है। पौधों को निम्न ताप से बचाने के लिए 1-1.5 मीटर की ऊँचाई पर बांस या लकड़ी गाड़ कर पालीथिन की चादर से ढक देना चाहिए ताकि तापक्रम सामान्य से 8-10 डिग्री सेल्सियस अधिक बना रहे और पौधों का विकास सुचारू रूप से हो सके।
नर्सरी में बीजों के जमाव के बाद थैलियों की मौसम के अनुसार समय समय पर सिंचाई करते रहते है। सिंचाई जहां तक हो सके फुहारे की सहायता से करें। यदि पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो तो पानी में घुलनशील एनपीके मिश्रण का पर्णी छिड़काव करें। कोई खरपतवार उग रहा हो तो हाथ द्वारा निकाल दें और यदि कीड़े व बीमारियों का प्रकोप दिखे तो उनका समुचित नियंत्रण करें।
खाद एवं उर्वरक : खेत की अन्तिम जुताई के समय 200-500 कुन्टल सड़ी-गली गोबर की खाद मिला देना चाहिए। सामान्यत: अच्छी उपज लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किग्रा यूरिया, 500 किग्रा सिगंल सुपर फास्फेट एवं 125 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटास की आवश्यकता पड़ती है। इसमें सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटास की पूरी मात्रा और युरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते हैं।
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20- 25 दिन बाद देकर मिट्टी चढ़ा देते हैं तथा चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग से देना चाहिए। लेकिन जब पौधों को गड्ढे में रोपते हैं तो प्रत्येक गड्ढे में 30-40 ग्राम यूरिया, 80-100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40-50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास देकर रोपाई करते हैं।
फीचर डेस्क कल्पतरु एक्सप्रेस साभार
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