गांधी युग में मथुरा के क्रांतिकारियों ने जारी रखीं उदार और अनुदार वादी गतिविधि
मथुरा। जंगे आजादी के दौर में फूटे आक्रोश को गांधी युग में अहिंसा की धार मिली। यहाँ गांधी युग में आजादी की लड़ाई कई मार्चा पर लड़ी गई। अनेक लोगों ने इसमें अपनी आहुति दी। सच में हथियारों और संसाधनों से लैस अंग्रेजों से छिटपुट विरोध करके आजादी नहीं मिल पाती। गांधी की अहिंसक धार ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया।
1921 के असहोग आन्दोलन का प्रभाव मथुरा, गोवर्धन, कोसी, अड़ींग, वृन्दावन, फरह, नौहझील आदि इलाकों में बनने लगा। अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिये ब्रजवासी, प्रेम, नवजीवन, सैनिक, प्रताप, भारत आदि समाचार पत्र निकाले गए।
लाला लाजपत राय के सम्मान में 9 अगस्त 1921 को वृन्दावन की मिर्जापुर वाली धर्मशाला में असहयोग आंदोलन में तेजी के लिए एक सभा हुई। इसके एक दिन बाद गांधी पार्क मथुरा में उनका सम्मान किया गया। 17 नवंबर 1921 को जनपद में पूर्ण हड़ताल हुई। इसमें अनेक लोग जेल गए। जनवरी 1922 तक चले असयोग आन्दोलन में सौ से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया।
1930 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अनुकरण यहाँ भी क्रांतिकारियों ने किया। मथुरा के क्रांतिकारियों ने आगरा तक की यात्रा की रूपरेखा तैयार की। वृन्दावन के प्रेम महाविद्यालय से आचार्य जुगलकिशोर के नेतृत्व में एवं मथुरा से सत्याग्रह आश्रम से धर्म किशोर के नेतृत्व में यात्राओं ने प्रस्थान किया। वृन्दावन, जेंत, बाटी, धनगांव, लालपुर, अड़ींग, राधाकुण्ड, गोवर्धन, बछगांव, सोंख, मगोर्रा, फरह क्षेत्र में होते हुए यात्राएं आगरा तक पहुँचीं। इधर बलदेव से गई यात्रा का नेतृत्व द्वारिका प्रसाद ने किया।
इस दौर में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए बायकाट दफ्तर बनाया गया। देहात का इस समय अविस्मरणीय योगदान रहा। 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में जिले के करीब 300 देश भक्तों को कारावास में कठोर यातनाएं सहनीं पड़ीं। 1942 के अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का विष्फोर यहाँ भी नौ अगस्त को हुआ। क्रांतिकारियों ने यमुना में नाव में सवारी करते हुए आन्दोलन की रूपरेखा बनाई लेकिन इसका पता चल गया। इसके बाद राधेश्याम द्विवेदी, हकीम ब्रजलाल, राधा मोहन चतुर्वेदी, केदारनाथ भार्गव आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। 10 अगस्त को इसके विरोध में शहर में सभाएं हुर्इं। जुलूस निकाले गए। इससे पुलिस और जनता में टकराव हुआ। 14 अगस्त 1942 को परखम में मालगाड़ी को गिराने के अपराध में अंग्रेजों ने जमकर आतंक स्थापित किया। 28 अगस्त को वृन्दावन में लोगों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया। इसमें हुए टकराव में क्रांतिकारी लक्ष्मण शहीद हो गए। अनेक लोग घायल हुए। 1944 में महात्मा गांधी आदि नेताओं को जेल से रिहा होने के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो पाया। अनेक अनम क्रांतिकारी इसमें खप गए।
मथुरा। जंगे आजादी के दौर में फूटे आक्रोश को गांधी युग में अहिंसा की धार मिली। यहाँ गांधी युग में आजादी की लड़ाई कई मार्चा पर लड़ी गई। अनेक लोगों ने इसमें अपनी आहुति दी। सच में हथियारों और संसाधनों से लैस अंग्रेजों से छिटपुट विरोध करके आजादी नहीं मिल पाती। गांधी की अहिंसक धार ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया।
1921 के असहोग आन्दोलन का प्रभाव मथुरा, गोवर्धन, कोसी, अड़ींग, वृन्दावन, फरह, नौहझील आदि इलाकों में बनने लगा। अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिये ब्रजवासी, प्रेम, नवजीवन, सैनिक, प्रताप, भारत आदि समाचार पत्र निकाले गए।
लाला लाजपत राय के सम्मान में 9 अगस्त 1921 को वृन्दावन की मिर्जापुर वाली धर्मशाला में असहयोग आंदोलन में तेजी के लिए एक सभा हुई। इसके एक दिन बाद गांधी पार्क मथुरा में उनका सम्मान किया गया। 17 नवंबर 1921 को जनपद में पूर्ण हड़ताल हुई। इसमें अनेक लोग जेल गए। जनवरी 1922 तक चले असयोग आन्दोलन में सौ से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया।
1930 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अनुकरण यहाँ भी क्रांतिकारियों ने किया। मथुरा के क्रांतिकारियों ने आगरा तक की यात्रा की रूपरेखा तैयार की। वृन्दावन के प्रेम महाविद्यालय से आचार्य जुगलकिशोर के नेतृत्व में एवं मथुरा से सत्याग्रह आश्रम से धर्म किशोर के नेतृत्व में यात्राओं ने प्रस्थान किया। वृन्दावन, जेंत, बाटी, धनगांव, लालपुर, अड़ींग, राधाकुण्ड, गोवर्धन, बछगांव, सोंख, मगोर्रा, फरह क्षेत्र में होते हुए यात्राएं आगरा तक पहुँचीं। इधर बलदेव से गई यात्रा का नेतृत्व द्वारिका प्रसाद ने किया।
इस दौर में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए बायकाट दफ्तर बनाया गया। देहात का इस समय अविस्मरणीय योगदान रहा। 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में जिले के करीब 300 देश भक्तों को कारावास में कठोर यातनाएं सहनीं पड़ीं। 1942 के अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का विष्फोर यहाँ भी नौ अगस्त को हुआ। क्रांतिकारियों ने यमुना में नाव में सवारी करते हुए आन्दोलन की रूपरेखा बनाई लेकिन इसका पता चल गया। इसके बाद राधेश्याम द्विवेदी, हकीम ब्रजलाल, राधा मोहन चतुर्वेदी, केदारनाथ भार्गव आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। 10 अगस्त को इसके विरोध में शहर में सभाएं हुर्इं। जुलूस निकाले गए। इससे पुलिस और जनता में टकराव हुआ। 14 अगस्त 1942 को परखम में मालगाड़ी को गिराने के अपराध में अंग्रेजों ने जमकर आतंक स्थापित किया। 28 अगस्त को वृन्दावन में लोगों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया। इसमें हुए टकराव में क्रांतिकारी लक्ष्मण शहीद हो गए। अनेक लोग घायल हुए। 1944 में महात्मा गांधी आदि नेताओं को जेल से रिहा होने के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो पाया। अनेक अनम क्रांतिकारी इसमें खप गए।
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