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रविवार, 9 जून 2013

बागवानी करें हल्दी की खेती


हल्दी के बगैर किसी सब्जी के स्वाद की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह मसा¶ों का राजा होने के साथ औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इसकी खेती सरल होने के साथ इसे आमदनी का एक अच्छा साधन बनाया जा सकता है।
हल्दी की खेती बलुई दोमट या मटियार दोमट मृदा में सफलतापूर्वक की जाती है। इसके लिए ज¶ निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए। यदि जमीन थोड़ी अम्लीय है तो उसमें हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। हल्दी की खेती हेतु भूमि की अच्छी तैयारी करने की आवश्यकता है क्योंकि यह जमीन के अंदर होती है जिससे जमीन को अच्छी तरह से भुरभुरी बनाया जाना आवश्यक है। खेत करीब नौ इंच की गहराई तक जोतना चाहिए। जुताई से पूर्व 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद एक हैक्टेयर में डा¶नी चाहिए।
इसके बाद 100-120 कि¶ोग्राम नत्रजन 60-80 कि¶ोग्राम फास्फोरस, 80-100 कि¶ोग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। हल्दी की खेती हेतु पोटाश का बहुत महत्व है जो इसके प्रयोग के अभाव में, हल्दी की गुणवत्ता तथा उपज दोनों ही प्रभावित होती है।
हल्दी की सफल खेती हेतु उचित फस¶ चक्र का अपनाना अति आवश्यक है। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हल्दी की खेती लगातार उसी जमीन पर न की जाए क्योंकि यह फस¶ जमीन से ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्वों को खींचती है। इससे दूसरे सा¶ उसी जमीन में इसकी खेती नहीं करें तो ज्यादा अच्छा होगा। सिंचित क्षेत्रों में मक्का, आ¶ू, मिर्च, ज्वार, धान, मूंगफली आदि फस¶ों के साथ फस¶ चक्र अपनाकर हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
मसा¶े वा¶ी किस्म, पूना, सोनिया, गौतम, रश्मि, सुरोमा, रोमा,कृष्णा, गुन्टूर, मेघा, हल्दा-1, सुकर्ण तथा सुगंधन आदि इसकी प्रमुख प्रजातियां हैं जिनका चुनाव किसान कर सकते हैं। इसकी थोड़ी सी मात्रा यदि एक बार मिल जाती है तो फिर अपना बीज तैयार किया जा सकता है।
पानी की पर्याप्त सुविधा वा¶े किसान अप्रै¶ के दूसरे पखवाड़े से जु¶ाई के प्रथम सप्ताह तक हल्दी को लगा सकते हैं, ¶ेकिन जिनके पास सिंचाई सुविधा का पर्याप्त मात्रा में अभाव है वे मानसून की बारिश शुरू होते ही हल्दी लगा सकते हैं। जमीन अच्छी तरह से तैयार करने के बाद 5-7 मीटर लम्बी तथा 2-3 मीटर चौड़ी क्यांरियां बनाकर 30 से 45 सेण्टीमीटर कतार से कतार तथा 20 - 25 सेण्टीमीटर पौध से पौध की दूरी रखते हुए 4-5 सेण्टीमीटर गहराई पर गाठी कन्दों को लगाना चाहिए। प्रति हैक्टेयर 12 से 15 कुंतल कंदों की आवश्यक्ता होती है। हल्दी में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं है ¶ेकिन यदि फस¶ गर्मी में ही बोई जाती है तो वर्षा प्रारंभ होने के पह¶े तक 4-5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हैं। मानसून आने के बाद सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। नवम्बर माह में पत्तियों का विकास तथा कन्द की मोटाई बढ़ना आरंभ हो जाता है तो उस समय उपज ज्यादा प्राप्त करने हेतु मिट्टी चढ़ाना आवश्यक हो जाता है जिससे कन्दों का विकास अच्छा होता है तथा उत्पादन में वृद्घि हो जाती है। मई- जून में बोई गई फस¶ फरवरी माह तक खोदने लायक हो जाती है। इस समय धन कन्दों का विकास हो जाता है और पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं।
हल्दी की अगेती फस¶ 7-8 माह मध्यम 8-9 माह तथा देर से पकने वा¶ी 9-10 माह में पककर तैयार हो जाती है। उपरोक्त मात्रा में उर्वरक तथा गोबर की खाद का प्रयोग कर के हम 50-100 किवंटल प्रति हैक्टेयर कच्ची हल्दी प्राप्त कर सकते हंै। यह ध्यान रहे कि कच्ची हल्दी को सुखाने के बाद वह 15-25 प्रतिशत ही रह जाती है।

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